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Saturday 14 March 2015

Saikadon bemariyon ki jad pet ke kiden

सैकड़ों बीमारियों की जड़ पेट के कीडे़


कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़।  कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़। बाहर के कीडे़ सर में मैल और body में पसीने की कारण से जन्मते हैं, जिन्हें जूँ, लीख और चीलर आदि नामों से जानते हैं। अन्दर के कीड़े तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम शौच से उत्पन्न होते हैं, जो गुदा में ही रहते हैं और गुदा द्वार के आसपास काटकर खून चूसते हैं। इन्हे चुननू आदि बहुत से नामों से जानते हैं। जब यह अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। दूसरे तरह के कीडे़ कफ के गंदे होने पर उत्पन्न होते हैं, जो 6 प्रकार के होते हैं। ये पेट में रहते हैं और उसमें हर ओर घूमते हैं। जब ये अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। तीसरे तरह के कीडे़ खून के गंदे होने पर उत्पन्न हो सकते हैं, ये सफेद व बहुत ही बारीक होते हैं और खून के साथ साथ चलते हुये हृदय, फेफडे़, मस्तिष्क आदि में पहुँचकर उनकी दीवारों में घाव बना देते हैं। इससे सूजन भी आ सकती है और यह सभी अंग प्रभावित होने लगते हैं। इनके खून में ही मल विसर्जन के वजह खून भी धीरे-धीरे गंदे होने लगता है, जिसकी वजह से कोढ़ से संबंधित बहुत से रोग होने का बना रहता है।

     इस सम्पूर्ण संसार में मनुष्य का शरीर सर्वश्रेष्ठ है। इसलिये हर तरह से हमें इसकी रक्षा करनी चाहिये। but, मनुष्य अपनी क्षणिक मानसिक तृप्ति के लिये तरह तरह के सडे़-गले भोजन जो body के लिये नुक्सान दायक हैं, खाता होता है। इससे शरीर में बहुत से प्रकार के कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं और यही शरीर की Mostly बीमारियों के जनक बनते हैं। ये
      एलोपैथिक चिकित्सा के अनुसार अमाशय के कीड़े खान-पान की अनियमितता के वजह उत्पन्न होते हैं,जो 6 प्रकार के होते हैं। 1- राउण्ड वर्म 2- पिन वर्म 3- हुक वर्म 5-व्हिप वर्म 6-गिनी वर्म आदि प्रकार के कीडे़ जन्म लेते हैं।  
कीडे़ क्यों उत्पन्न होते हैं  बासी और मैदे की बनी चीजें अधिकता से खाने, अधिक मीठा गुड़-चीनी अधिकता से खाने, दूध या दूध से बनी अधिक चीजें खाने, उड़द और दही वगैरा के बने भोजन अधिक मात्रा में खाने, अजीर्ण में भोजन करने, दूध और दही के साथ साथ नमक लगातार खाने, मीठा रायता जैसे पतले पदार्थ अत्यधिक पी लेने से मनुष्य शरीर में कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं। 
कीडे़ उत्पन्न होने के लक्षण और बीमारियाँ  body के अन्दर मल, कफ व खून में बहुत से प्रकार के कीडे़  उत्पन्न होते हैं। इनमें खासकर बड़ी आंत में उत्पन्न होने वाली फीता कृमि (पटार) अधिक खतरनाक होती है।
Related Links: बीमारियों का उपचार  |  आयुर्वेदिक औषधियां

1 comment:

  1. आरती जी बहुत ही अच्‍छी जानकारी और बहुत ही उपयोगी ब्‍लाग। मेरा भी एक ब्‍लाग आयुर्वेद पर आधारित है। हालांकि अभी यह प्रारम्भिक अवस्‍था में ही है। गूगल भी हिंदी को सपोर्ट कर रहा है। इससे आशा है कि अब हिंदी ब्‍लाग और हिंदी वेबसाइट बड़ी तादात में आएंगीं और हिंदी भाषी लोगों की सहायता और समस्‍यओं का निवारण करने में सहायक बनेंगीं।

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