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Monday 16 March 2015

Pandu-Rog-Piliya

पाण्डु रोग (पीलिया-Jaundice) 


चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है।
       चरक ने लिखा है, बादी करने वाले अन्नपानादि सेवन करने और उपवास आदि करने से वायु कुपित होकर कष्टसाध्य पाण्डु रोग उत्पन्न करती है। इसमें शरीर का रंग रूखा और काला रंग मिला सा बन जाता है। शरीर में दर्द होता है, सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है, कपकपी होती है, पसलियों और सिर में दर्द होता है, मल सूख जाता है और मुहं में विरसता होती है। सूजन, कमजोरी और अफारा होता है। सुश्रुत ऋषि कहते हैं कि वायु के पाण्डु रोग में आंखों में पीलापन लिये ललाई होती है।
(2) पित्त पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पित्त प्रधान पाण्डु रोग में बीमार व्यक्ति का रंग हरा या पीला होता है, ज्वर, दाह, उल्टी, मूर्छा और प्यास होती है तथा मल-मूत्र पीले होते हैं। बीमार व्यक्ति का मुंह कड़वा रहता है, वह कुछ भी खाना नहीं चाहता तथा गर्म और खट्टे पदार्थ सहन नहीं कर सकता। उसे खट्टी डकारें आती है। अन्न विदग्ध होने से शरीर में विद्रोह होता है। बदन से बदबू आती है, मल पतला उतरता है, शरीर कमजोर हो जाता है और सामने अंधेरा महसूस होता है। बीमार व्यक्ति शीतल पदार्थों या ठण्ड को पसन्द करता है।   
(3) कफज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण
      चरक ने लिखा है, कफकारी पदार्थांे से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को बिगाड़कर कफ का पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। इसमें भारीपन, तन्द्रा, उल्टी, सफेद रंग होना, लार गिरना, रोंए खड़े होना, थकान महसूस होना, बेहोशी, भ्रम, श्वास, आलस्य, अरुचि, आवाज रुकना, गला बैठना, मूत्र, नेत्र और विष्ठा का सफेद होना, रूखे, कड़वे और खट्टे पदार्थांे का अच्छा लगना, सूजन और मुँह का स्वाद नमकीन सा रहना-ये लक्षण होते हैं। 
(4) सन्निपातज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      यह सब प्रकार के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य के गंदे हुये तीनों दोषों से उपर्युक्त तीनों दोषों के लक्षणों वाला, अत्यन्त असह्य घोर पाण्डु रोग होता है। सन्निपात के पाण्डु रोग वाले को तन्द्रा, आलस्य, सूजन, उल्टी, खांसी, पतले दस्त, ज्वर, मोह, प्यास, ग्लानि और इन्द्रियों की शक्ति का नाश, जैसे लक्षण होते हैं।   
(5) मिट्टी खाने से हुये पाण्डु के लक्षण 
      जिस मनुष्य का मिट्टी खाने का स्वभाव पड़ जाता है, उसके वात, पित्त और कफ कुपित हो जाते हैं। कसैली मिट्टी से वायु कुपित होती है, खारी मिट्टी से पित्त कुपित होता है और मीठी मिट्टी से कफ कुपित होता है। खारी मिट्टी पेट में जाकर रसादिक धातुओं को रूखा कर देती है। जब रूखापन उत्पन्न हो जाता है, तब जो अन्न खाया जाता है, वह भी रूखा बन जाता है। फिर वही मिट्टी पेट में पहुँचकर बिना पके रस को रस बहाने वाली नसों में ले जाकर नसों की राह बन्द कर देती है। जब खून बहाने वाली नसों की राहें रुक जाती हैं, शरीर की कान्ति, तेज और ओज कम हो जाते है, तब पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पाण्डु रोग होने से बल, वर्ण और अग्नि का नाश होता है।
 ऐलोपैथी के अनुसार:- 
      ऐलोपैथी में पीलिया या कामला को जॉण्डिस( रंनदकपबम ) कहते हैं। इसमें आंखों के सफेद पटल, त्वचा तथा श्लेष्माला कला का रंग पीला बन जाता है। यह पीलापन खून में पाये जाने वाले एक रंजक पदार्थ ‘बिलिरुबिन‘ (पित्त-अरुण) की अधिकता से होता है। लाल खून कण बनने की क्रिया में ही कोई गड़बड़ी हो जाया करती है तथा यकृत सही ढंग से काम नहीं करता। 
लक्षण
        पहले आंखों का सफेद होना फिर चेहरा, गर्दन, हाथ-पैर, और पूरे शरीर में पीलापन हो जाना, तालू भी पीला हो जाता है, लम्बी अवधि तक रहने वाले पीलिया में त्वचा का रंग गहरे हरे रंग का बन जाता है। मल अधिक मात्रा में होता है। पसीना भी पीला रंग का होता है। नाड़ी धीमी चलती है तथा आसपास की सभी चीजें पीली दिखाई देती हैं।   
पाण्डु रोग के पहले के लक्षण 
      जब पाण्डु होने वाला होता है, तब त्वचा का फटना, बारम्बार थूकना, अंगों का जकड़ना, मिट्टी खाने पर मन चलना, आंखों पर सूजन आना, मल और मूत्र का पीला होना तथा अन्न का न पचना-ये लक्षण पहले ही नजर आते हैं। 
पीलिया रोग निवारण अनुभूत नुस्खे  
(1)  फूल फिटकरी का चूर्ण (Powder) 20Grams लेकर उसकी 21पुड़िया बना लिजिएं। एक पुड़िया की आधी औषधि को morning मलाई निकले 100 grams दही में चीनी मिलाकर खाली पेट morning खा लिजिएं। इसी प्रकार रात को सोते Time बकाया आधी पुड़िया खा लिजिएं। इस प्रकार 21दिन लगातार औषधि खाने से पीलिया रोग सही हो जाता हैं। 
नोट - 50Grams सफेद फिटकरी गर्म तवा में डालकर भून लिजिएं। जब उसके अन्दर का जल सूख जाये, तो उसे के साथ पीस लें और रख लिजिएं, वह ही फूल फिटकरी है। जब तक मरीज यह औषधि खाता है, तब तक यदि गन्ने का रस मिल सके, तो जरूर पियें। यह योग पूर्णतः परीक्षित है। 
(2) कुटक 1तोला, मुनक्का 1तोला, त्रिफला आधा तोला को रात को जल में भिगोएं। morning के साथ पीस लें और दिन में दो बार चीनी मिलाकर 21दिन लगातार लेते रहने से पीलिया में आराम मिलता है। 
(3)  मूली के पत्तों के 100Grams रस में 20Grams चीनी मिलाकर पिलायें। साथ ही मूली, सन्तरा, पपीता, तरबूज, अंगूर, टमाटर खाने को दें। साथ ही गन्ने का रस पिलायेें और पेट साफ रख दें। पीलिया में आराम जरूर मिलेगा।
Related Links:    आयुर्वेद   |   अंगूर   |  डेंगू ज्वर   |   पेट के कीड़े    |   पीलिया औषधियों से उपचार

4 comments:

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