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Thursday, 20 November 2014

Ayurvedic Treatments

This is based on many centuries of experience in medical practice, handed down through age groups
Ayurveda is the most ancient and established system of remedy. In India, this is a very famous Ayurved Treatment System. This is based on many centuries of experience in medical practice, handed down through age groups. Ayurvedic medicine originated in the early people of India some 25,000-55 00 years back making Ayurvedic remedy the oldest surviving curative system in this world.
Ayurveda - The Indian Science of Life
The word of Ayurveda is formed by the grouping of two words - "Ayu" sense is life, and "Veda" sense is knowledge. Ayurveda is viewed as "The Science of Life" and the perform involves the care of physical, mental and religious health of human beings.
Life along with Ayurveda is a grouping of senses, mind, soul and body. It is not only limited to body or physical indications but also gives a complete knowledge about religious, mental and social health. Therefore this is a qualitative, holistic science of health and long life, a attitude and system of curative the whole body and mind.
In Ayurveda, many types of medicine as like Apple, Mango, Orange, Bana, etc are used to treatment of the diseases. In Ancient science, the diseases of the body are cured by many types of medicines that are natural plants. The system tries to attach various imbalances in the body and applies aromatic plants and natural products to cure the body. The system was increased to aid a human being towards pious progress and rejuvenation. Now a day, it is used primarily as a way to cure the body and come down stress.
This treatment works on the principle of removing deep seated toxins from the body causing imbalance and is recommended 3 times a year – at the turn of spring , autumn and winter.  A healthy person is recommended this treatment once a year to rejuvenate and revitalize the body by bringing into balance various constituents.
Ayurvedic treatment has no meaning of suppressing the main symptoms and creating some new ones as side effects of the treatment. This is to remove the root cause and give permanent relief.
There are four main arrangements of disease in Ayurveda: shodan, or cleansing; shaman or palliation; rasayana, or rejuvenation; and satvajaya, or mental hygiene.
The treatment mainly comprises of tablets, powders, medicated oils, pisans, etc. made from natural fragrant plants, and minerals. As the herbs are from natural sources and not artificial, they are considered and digested in the body without making any side effects and conversely, there may be some side benefits.
Along with proper diet, medicine, living style and exercise is also given advice. This is evenly significant. If we are using an herb to remove the cause and recently we are using some food or following a life style which is increasing the cause of disease, then we may not get Healthy or will be catching less release. As well as these Panch Karma and Yoga therapy can be very safely used to endorse good health, stop illnesses and obtain longevity.

Monday, 18 August 2014

डेंगू- Dengue-बुखार की जांच, कारण, लक्षण, बचाव


डेंगू बुखार की जांच
किसी भी बीमारी को जांचने के लिए रक्तच जांच करना वर्तमान में बहुत आवश्यकक हो गया है। आज के समय में इतनी सारी बीमारियां घर कर चुकी है कि बीमारी की पुष्टि के लिए, रक्तर जांच करनी ही पड़ती है। लेकिन इसके साथ ही डॉक्टलर्स की सलाह लेना भी सर्वमान्यट है। किसी भी भ्रम में पड़ने से बेहतर है डॉक्ट र के पास जाना। डेंगू की पुष्टि के लिए भी रक्तक जांच जरूरी होती है। बुखार की शिकायत होने पर तुरंत डॉक्टकर को दिखाना चाहिए। आइए जानें डेंगू के निदान के बारे में।
-    डेंगू की पुष्टि भी रक्त  जांच से होती है। लेकिन सभी बीमारियों को जांचने का तरीका अलग होता है।
-    जैसे मलेरिया के कई प्रकार है वैसे ही डेंगू के भी कई प्रकार है। डेंगू के सभी रूपों की पुष्टि करने के लिए रक्त जांच की आवश्य कता पड़ती है जिसके आधार पर यह बताया जाता है कि रोगी किस प्रकार के डेंगू से ग्रसित है।
-    डेंगू का पता लगाने के लिए आम तौर पर एलिजा जांच का ही सहारा लिया जाता रहा  है। लेकिन इस जांच के जरिए शुरुआती पांच से छह दिन तक इसके संक्रमण का पता  नहीं लग पता।
-    रीयल टाइम पीसीआर (पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) के जरिए डेंगू के सभी सीरोटाइप का सटीक पता बहुत जल्दी लग जाता है। एनसीडीसी में नमूने आने के आठ घंटे के अंदर इसके नतीजे हासिल किए जा सकते हैं।
-    दरअसल, डेंगू के मामलों में उसके डॉक्टरी परीक्षण के साथ ही वायरस विशेष के एंटीबॉडी की पहचान भी जरूरी होती है।
-    कई बार डेंगू का संदेह होने पर भी रक्तट जांच की जाती है यदि उस जांच के परिणामों में कोई गड़बड़ दिखाई पड़ती है या फिर प्लेरटलेट्स कम होती है तो इन्हें  भी डेंगू के लक्षण मान लिया जाता है। ऐेसे में डेंगू की जांच नए सिरे से दोबारा की जाती है। वास्तंव में डेंगू का सही निदान रक्त परीक्षा में वायरल एंटीजन की उपस्थिति से ही होता है ।
डेंगू भी एडीस इजिप्ट प्रजाति के मच्छ रों के कांटने से फैलता है। वर्तमान में डेंगू बहुत आम हो गया है। हालांकि अभी तक डेंगू के बचाव के लिए कोई खास तकनीक उपलब्धै नहीं हो पाई है लेकिन इसके लिए लगातार प्रयास जारी है।
डेंगू रक्तस्रावी ज्वर
डेंगू खतरनाक बीमारी है जो मच्‍छर के काटने से फैलता है। एडीज मादा मच्‍छर के काटने से डेंगू फैलता है। यह मच्‍छर साफ पानी में पनपता है। डेंगू बरसात के मौसम में ज्‍यादा फैलता है। बरसात का पानी गमलों, कूलरों, टायर आदि में एकत्रित हो जाता है जिसमें एडीज मच्‍छर पनपते हैं।
डेंगू रक्तस्रावी ज्वर डेंगू में बुखार बहुत तेज होता है और इसके साथ ही कमजोरी और चक्कर भी आता है। कुछ लोगो में चक्‍कर के कारण बेहोशी छा जाती है। डेंगू के मरीज को उल्टियां भी आती हैं और उसके मुंह का स्‍वाद बदल जाता है। सिरदर्द, बदन दर्द और पीठ दर्द की शिकायत डेंगू में होती है। आइए हम आपको डेंगू केबारे में जानकारी देते हैं।
क्‍या है डेंगू
डेंगू एडीज मच्छर के काटने से होने वाला एक तीव्र वायरल इन्फेक्शन है। इससे शरीर की सामान्य क्लॉटिंग (थक्का जमना) की प्रक्रिया अव्यवस्थित हो जाती है। डेंगू होने पर प्‍लेटलेट् की संख्‍या कम हो जाती है। डेंगू होने पर शरीर से ब्‍लीडिंग भी होती है।
कैसे फैलता है डेंगू
मलेरिया की तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से फैलता है। इन मच्छरों को 'एडीज मच्छर' कहते हैं जो दिन में भी काटते हैं। डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी के रक्त में डेंगू वायरस काफी मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी रोगी को काटने के बाद किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह डेंगू वायरस को उस व्यक्ति के शरीर में पहुंचा देता है।
डेंगू ज्वर के लक्षण
  •     तेज बुखार, डेंगू का प्रमुख लक्षण है।
  •     शरीर में बहुत तेज दर्द होता है, विशेषकर जोड़ों और अस्थियों में।
  •     सिर में बहुत तेज दर्द होता है।
  •     हाथ-पैर में चकत्ते होना, खासकर दबे हुए हिस्‍से में।
  •     मतली और उल्‍टी होना।
डेंगू का निदान और चिकित्‍सा
खून की जांच के द्वारा डेंगू का निदान होता है। रोगियों रक्त परीक्षा करने पर प्लेटलेट की संख्‍या कम पायी जाती है। इसमें हीमोब्‍लोबिन सामान्य हो सकता है। रक्त का ब्लीडिंग और क्लॉटिंग समय लंबा हो सकता है। डेंगू का सही निदान रक्त परीक्षा में वायरल एंटीजन की उपस्थिति से होता है।
डेंगू के वायरस का कोई ईलाज नहीं है। नष्ट हुए प्लेटलेट की पूर्ति के लिए प्लेटलेट का ट्रान्सफ्यूजन, रक्त और बड़ी मात्रा में अन्तशिरा द्वारा द्रव दिया जाता है। मलेरिया और अन्य इन्फेक्शन की रोकथाम के लिए अतिरिक्त एंटीबायोटिक दिया जाता है।

डेंगू बुखार में प्लेटलेट की घटती संख्या
डेंगू एक जानलेवा बीमारी है जो एडीज मच्‍छर के काटने से फैलता है। डेंगू होने पर प्‍लेटलेट्स की संख्‍या घट जाती है। मनुष्य के शरीर में रक्त बहुत ही महत्वपूर्ण है। सामान्यतः स्वस्थ व्यक्ति में कम से कम 5-6 लीटर खून होता है। इस खून में तरल पदार्थ के अलावा कई तरह के पदार्थ भी शामिल होते हैं।
प्लेटलेट की घटती संख्याप्लेटलेट्स दरअसल रक्त का थक्का बनाने वाली कोशिकाएं या सेल्स हैं जो लगातार नष्ट होकर निर्मित होती रहती है। ये रक्त में बहुत ही छोटी छोटी कोशिकाएं होती हैं। ये कोशिकाएं रक्त में 1 लाख से 3 लाख तक पाई जाती हैं। इन प्लेटलेट्स का काम टूटी-फूटी रक्तवाहिकाओं को ठीक करना है। डेंगू बुखार से संक्रमित व्यक्ति की प्लेटलेट्स समय-समय पर जांचनी चाहिए। प्लेटलेट्स की जांच ब्‍ल्‍ड टेस्ट के माध्यम से की जाती है। आइए हम आपको बताते हैं कि डेंगू होने पर प्‍लेटलेट्स की संख्‍या क्‍यों घट जाती है।

प्लेटलेट्स कम होने के नुकसान
डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स कम होने से संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। दरअसल प्लेटलेट्स का काम ब्लड क्लॉटिंग है यानी बहते खून पर थक्का जमाना, जिससे ज्यादा खून न बहे। यानी ये शरीर से खून को बहने से रोकते हैं। अगर इनकी संख्या रक्त में 30 हजार से कम हो जाए, तो शरीर के अंदर ही खून बहने लगता है और शरीर में बहते-बहते यह खून नाक, कान, यूरीन और मल आदि से बाहर आने लगता है।
कई बार यह ब्लीडिंग शरीर के अंदरूनी हिस्सों में ही होने लगती है। कई बार आपके शरीर पर बैंगनी धब्बे पड़ जाते है लेकिन आपको इनके बारे में मालूम नहीं होता, ये निशान भी प्लेटलेट्स की कमी के कारण होते है। यह स्थिति कई बार जानलेवा भी हो सकती है। डेंगू बुखार में यदि प्लेटलेट्स के कम होने होने पर ब्लड प्लेटलेट्स न चढ़ाए जाए तो डेंगू संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु  भी हो सकती है।
हालांकि प्‍लेटलेट्स कम होने का मतलब यह नही है कि आपको डेंगू हो गया है, अन्‍य कारणों से भी प्‍लेटलेट्स की संख्‍या घट जाती है।

डेंगू में प्‍लेटलेट्स की संख्‍या घटने के कारण
डेंगू मच्‍छर के काटने से फैलने वाली बीमारी है। जब ये मच्‍छर हमारे शरीर में काटते हैं तो शरीर में वायरस फैल जाता है। ये वायरस प्‍लेटलेट के निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। सामान्‍यतया हमारे शरीर में एक बार प्‍लेटलेट का निर्माण होने के बाद 5-10 दिन तक रहता है, जब इनकी संख्‍या घटने लगती है तब शरीर आवश्‍यकता के हिसाब से इनका दोबारा निर्माण कर देता है। लेकिन डेंगू के वायरस प्‍लेटलेट निर्माण की क्षमता को कम कर देते हैं।
डेंगू बुखार में प्लेटलेट की घटती संख्या के लक्षण
  •     शरीर पर अपने-आप या आसानी से खरोंच के निशान बनना।
  •     शरीर के किसी भी हिस्से पर छोटे या बड़े लाल-बैंगनी रंग के धब्बे दिखना, खासकर पैर के नीचे के हिस्से में।
  •     मसूड़ों या नाक से खून आना।
  •     यूरीन या मल में खून आना।
इसके अतिरिक्त डेंगू के दौरान यदि रक्त में मौजूद प्लेटलेट्स लगातार गिरने लगते हैं तो इसकी पूर्ति भी प्लेटलेट्स चढ़ाकर की जाती है। डेंगू बुखार बढ़ने पर प्लेटलेट्स तेजी से गिरते हैं। इस स्थिति में ब्लीडिंग शुरू हो जाती है और शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने शुरू हो जाते हैं। यदि रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा चालीस हजार से कम होती है तो मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में एक मरीज को कम से कम दो यूनिट प्लेटलेट्स की जरूरत होती है।

डेंगू बुखार और यात्रा
डेंगू बुखार और यात्रा एक-दूसरे से जुड़ें हैं। वयस्‍कों को डेंगू होने का खतरा ज्‍यादा होता है क्‍योंकि वे एक जगह से दूसरे जगह पर जाते रहते हैं। अलग-अलग जगहों पर जाने के कारण उनका उनका एक्‍सपोजर ज्‍यादा होता है।
डेंगू ग्रस्‍त आदमी डेंगू से बचने का एकमात्र उपाय है मच्छरों से बचना। यह मच्छर जनित वायरल मच्छरों के काटने से फैलता है। हालांकि इसका निवारण और नियंत्रण संभव है लेकिन यात्रा के दौरान डेंगू बुखार से बचने के लिए सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। आइए जाने डेंगू बुखार से बचने के लिए यात्रा के दौरान क्‍या सावधानियां बरतें।
डेंगू बुखार और यात्रा
  •     सबसे पहले तो आपको यात्रा पर जाने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि आप जिस जगह जा रहे हैं कहीं वह डेंगू प्रभावित क्षेत्र तो नहीं यदि ऐसा है तो आपको वहां जाने से बचना चाहिए।
  •     यदि डेंगू प्रभावित क्षेत्र में जाना जरूरी है तो मच्छरों से बचाव के लिए पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए।
  •     ध्यान रखें कि आप जिस जगह पर ठहर रहे हैं वहां गंदगी या फिर पानी भरा हुआ न हो।
  •     आप अपने साथ मॉसकीटो नेट (मच्‍छरदानी) ले जा सकते हैं, इसका प्रयोग कर आप मच्छरों के काटने से बच सकते हैं।
  •     यात्रा के दौरान पूरी बांह के कपड़े पहनें, कपड़ों के जरिए अपने शरीर को ढंकिए।
  •     डेंगू का इलाज इससे होने वाली परेशानियों को कम कर के ही किया जा सकता है। डेंगू बुखार में आराम करना और पानी की कमी को पूरा करना बहुत ज़रूरी है। हालांकि यह बीमारी जानलेवा हो सकती है और आमतौर पर यह बीमारी अकसर 15 से 20 दिन तक रहती है।
  •     ऐसी जगह जहां डेंगू फैल रहा है वहां पानी को जमने नहीं देना चाहिए जैसे प्लास्टिक बैग, कैन ,गमले, सड़को या कूलर में जमा पानी। इसीलिए जहां भी आप यात्रा के लिए जा रहे हैं इन बातों का ध्यान रखें और यदि ऐसा कुछ है तो उसे साफ रखने के लिए कहें।
  •     बदलते मौसम में अगर आप किसी नयी जगह पर जा रहे हैं, तो मच्छरों  से बचने के उत्पादों का प्रयोग करें।
  •     अपने खाने-पीने का बदलते मौसम में खास ध्यान रखें। अगर यात्रा के लिए आप अपने साथ हल्‍के स्नैक्स ले जाएं तो ये आपके स्वास्‍थ्‍य के लिए भी अच्छा है।
  •     डेंगू का निवारण और नियंत्रण थोड़े से प्रयास के बाद किया जा सकता है।
  •     डेंगू संक्रमण बुखार के दौरान रोगी को पेट संबंधी शिकायते होने लगती है। इसमें पेट खराब हो जाना, पेट दर्द होना, दस्त लगना, ब्‍लैडर की समस्या, जोड़ो में दर्द, बदन दर्द इत्यादि हो सकते है। इस तरह की शिकायतें होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
  • डेंगू बुखार शरीर में फैलने में थोड़ा समय लेता है। इसीलिए इसकी पहचान मुश्किल होती है। लेकिन डेंगू के लक्षणों को ध्यान में रखकर डेंगू की पहचान सही समय पर की जा सकती है और यात्रा के दौरान सावधानी भी जरूरी है।

 

Sunday, 17 August 2014

Janmashtami कृष्ण जन्माष्टमी: कहानी कृष्ण जन्म की

Janmashtami – Story of Lord Krishna
मानव जीवन सबसे सुंदर और सर्वोत्तम होता है. मानव जीवन की खुशियों का कुछ ऐसा जलवा है कि भगवान भी इस खुशी को महसूस करने समय-समय पर धरती पर आते हैं. शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी समय-समय पर मानव रूप लेकर इस धरती के सुखों को भोगा है. भगवान विष्णु का ही एक रूप कृष्ण जी का भी है जिन्हें लीलाधर और लीलाओं का देवता माना जाता है।
Janmashtami - Festivals of IndiaKrishna Janmashtami
कृष्ण को लोग रास रसिया, लीलाधर, देवकी नंदन, गिरिधर जैसे हजारों नाम से जानते हैं. कृष्ण भगवान द्वारा बताई गई गीता को हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ और पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) कृष्ण जी के ही जन्मदिवस के रूप में प्रसिद्ध है।
When is Janmashtami 2012
मान्यता है कि द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है। इस साल जन्माष्टमी (Janmashtami) 10 अगस्त को है।
Birth Of Krishna-कृष्ण जन्मकथा
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्र रूप में हुआ था. कंस ने अपनी मृत्यु के भय से अपनी बहन देवकी और वसुदेव को कारागार में कैद किया हुआ था। कृष्ण जी जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारो तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। भगवान के निर्देशानुसार कुष्ण जी को रात में ही मथुरा के कारागार से गोकुल में नंद बाबा के घर ले जाया गया।
नन्द जी की पत्नी यशोदा को एक कन्या हुई थी। वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को अपने साथ ले गए. कंस ने उस कन्या को वासुदेव और देवकी की संतान समझ पटककर मार डालना चाहा लेकिन वह इस कार्य में असफल ही रहा। दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई. इसके बाद श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया। जब श्रीकृष्ण जी बड़े हुए तो उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को उसकी कैद से मुक्त कराया।
जन्माष्टमी में हांडी फोड़
श्रीकृष्ण जी का जन्म मात्र एक पूजा अर्चना का विषय नहीं बल्कि एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में भगवान के श्रीविग्रह पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, केसर तथा जल आदि चढ़ाने के बाद लोग बडे हर्षोल्लास के साथ इन वस्तुओं का परस्पर विलेपन और सेवन करते हैं। कई स्थानों पर हांडी में दूध-दही भरकर, उसे काफी ऊंचाई पर टांगा जाता है। युवकों की टोलियां उसे फोडकर इनाम लूटने की होड़ में बहुत बढ-चढकर इस उत्सव में भाग लेती हैं। वस्तुत: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत केवल उपवास का दिवस नहीं, बल्कि यह दिन महोत्सव के साथ जुड़कर व्रतोत्सव बन जाता है।




Monday, 11 August 2014

5 ऐसे योगासन जो मधुमेह पर लगाम लगाएं

योगासन
योग से डायबिटीज पर काबू पाएं
नियमित योग एक तरफ जहां आपको स्वस्थ रखता है वहीं दूसरी तरफ गंभीर बीमारियों से भी निजात दिलाता है। अगर मधुमेह में नियमित कुछ खास तरह के योग किए जाएं तो मधुमेह को कंट्रोल कर सकते हैं। आइए जानें कुछ खास योगासनों के बारे में जो डायबिटीज को कम करने में मददगार हो सकते हैं।
प्राणायाम:
गहरी सांस लेना और छोड़ना रक्त संचार को दुरुस्त करता है।  इससे दिमाग शांत होता है और नर्वस सिस्टम को आराम मिलता है। फर्श पर चटाई बिछाकर पद्मासन की मुद्रा में पैर पर पैर चढ़ाकर बैठ जाएं। अब अपनी पीठ सीधी करें, अपने हाथ घुटनों पर ले जाएं, ध्यान रहे हथेली ऊपर की तरफ खुली हो, और अपनी आँखें बंद करें। गहरी सांस लें और पांच की गिनती तक सांस रोककर रखें। अब धीरे धीरे सांस छोड़ें। इस पूरी प्रक्रिया को कम से कम दस बार दोहराएं।
सेतुबंधासन:
यह आसन न सिर्फ रक्तचाप को नियंत्रित रखता है बल्कि मानसिक शान्ति देता है और पाचनतंत्र को ठीक करता है। चटाई पर लेट जाएं।अब सांस छोड़ते हुए पैरों के बल ऊपर की ओर उठें। अपने शरीर को इस तरह उठाएं कि आपकी गर्दन और सर फर्श पर ही रहे और शरीर का बाकी हिस्सा हवा में।  सपोर्ट के लिए आप हाथों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अगर आप में लचीलापन है तो अतिरिक्त स्ट्रेचिंग के लिए आप अपनी अंगुलियों को ऊपर उठी पीठ के पीछे भी ले जा सकते हैं। अपने कम्फर्ट का ध्यान रखते हुए इस आसन को पूरा करें।
बलासन:
बच्चों की मुद्रा के नाम से जाना जाने वाला यह आसन तनावमुक्ति का बहुत अहम साधन है। इससे तनाव और थकान से राहत मिलाती है। ये ज्यादा देर तक बैठे रहने से होने वाले लोअर बैक पेन में भी काफी मददगार साबित होता है। फर्श पर घुटनों के बल बैठ जाएं। अब अपने पैर को सीधे करते हुए अपनी एड़ी पर बैठ जाएं। दोनों जांघों के बीच थोड़ी दूरी बनाएं। सांस छोड़ें और कमर से नीचे की और झुकें। अपने पेट को जाघों पर टिके रहने दें और पीठ को आगे की और स्ट्रेच करें। अब अपनी बांहों को सामने की तरफ ले जाएं ताकि पीठ में खिंचाव हो।  आप अपने माथे को फर्श पर टिका सकते हैं बशर्ते आपमें उतना लाचीलापन हो।  पर शरीर के साथ ज़बरदस्ती न करें। वक्त के साथ आप ऐसा करने में कामयाब होंगे।
वज्रासन:
यह एक बेहद सामान्य आसन है जो मानसिक शान्ति देने के साथ पाचन तंत्र को ठीक रखता है। घुटने टेक कर बैठ जाएं और अपने पैर के ऊपरी सतह को चटाई के संपर्क में इस तरह रखें कि आपकी एड़ी ऊपर की तरफ हो।  अब आराम से अपनी पुष्टिका को एड़ी पर टिका दें।  यह ध्यान देना ज़रूरी है कि आपका गुदाद्वार आपकी दोनों एड़ी के ठीक बीच में हो।  अब अपनी दोनों हथेलियों को नीचे की और घ्तनों पर ले जाएं।  अपनी आँखें बंद करें और एक गति में गहरी साँस लें।
सर्वांगासन:
चटाई पर पैर फैलाकर लेट जाइए।  अब धीरे धीरे घुटनों को मोड़कर या सीधे ही पैरों को ऊपर उठाइए।  अब अपनी हथेली को अपनी पीठ और पुष्टिका पर रखकर इस आसन को सपोर्ट कीजिए।  अपने शरीर को इस तरह ऊपर उठाइए कि आपके पंजे छत की दिशा में इंगित हों।  समूचा भार आपके कंधों पर होना चाहिए।  सुनिश्चित करें कि आप धीरे-धीरे सांस ले रहे हैं और अपनी ठुड्डी को सीने पर टिका लें।  आपकी केहुनी फर्श पर टिकी होनी चाहिए और आपकी पीठ को हथेली का साथ मिला होना चाहिए।  इस आसन में तब तक रहें जब तक आप इसके साथ सहज हैं।  लेटने वाली मुद्रा में वापस आने के लिए धीरे-धीरे पैरों को नीचे लाएं, सीधा तेज़ी से नीचे न आएं।



Sunday, 10 August 2014

सात कुदरती उपाय जो हाई बीपी पर लगाम लगाएं

तेज रफ्तार भागती जिंदगी ने हमारी रगों में खून की रफ्तार को भी जरूरत से बढ़ा दिया है। खून की यह बेहद तेज रफ्तार हमारी सेहत के लिए अच्‍छी नहीं।  डॉक्‍टरी जुबान में इसे हाइपरटेंशन कहा जाता है यानी हाई बीपी। उच्‍च रक्‍तचाप को नियंत्रित करने के लिए हमें दवाओं का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन इसके साथ ही कुछ कुदरती उपाय भी हैं जिनके जरिये बीपी को काबू किया जा सकता है।
http://jkhealthworld.com/hindi/%E0%A4%89%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A-%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AAपॉवर वॉक-
तेज गति से चलते से न केवल आपकी फिटनेस में सुधार होता है, बल्कि साथ ही साथ इससे रक्‍तचाप को भी नियंत्रित करने में मदद मिलती है। व्‍यायाम करने से हमारे दिल की कार्यक्षमता में इजाफा होता है और वह ऑक्‍सीन का बेहतर इस्‍तेमाल कर पाता है। इसके लिए आपको कड़ा व्‍यायाम करने की जरूरत नहीं। सप्‍ताह में चार से पांच दिन तक 30 मिनट कार्डियो एक्‍सरसाइज करने से ही आपको काफी फायदा होगा।
गहरी सांस लें-
प्राणायाम, योग और ताई ची जैसी श्‍वास प्रक्रियायें तनाव को कम करने में मदद करती हैं। इससे भी रक्‍तचाप को कम करने में मदद मिलती है। सुबह शाम पांच से दस मिनट तक इन क्रियाओं को करना आपकी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। गहरी सांस लें, आपका पेट पूरी तरह फूल जाना चाहिए। सांसे छोड़ते ही आपकी सारी चिंता बाहर निकल जाएगी।
आलू-
आहार में पोटेशियम युक्‍त फलों और सब्जियों को शामिल करने से आप रक्‍तचाप को कम कर सकते हैं। यदि आप रोजाना 2 हजार से 4 हजार मिलीग्राम पोटेशियम का सेवन करने से आप स्‍वयं को उच्‍च रक्‍तचाप से दूर रख सकते हैं। शकरकंदी, टमाटर, संतरें का रस, आलू, केला, राजमा, नाशपति, किशमिश, सूखे मेवे और तरबूज आदि में पोटेशियम काफी मात्रा में होता है।
नमक का सेवन करें कम-
नमक का अधिक सेवन करने से उच्‍च रक्‍तचाप का खतरा बढ़ जाता है। इसे कम करने के लिए आपको अपने भोजन में नमक की मात्रा कम करनी चाहिए। डॉक्‍टरों का मानना है कि नमक में मौजूद सोडियम की अधिक मात्रा हमारे शरीर के लिए अच्‍छी नहीं होती। इसलिए जरूरी है कि नमक का सेवन अल्‍प मात्रा में ही किया जाए।
डार्क चॉकलेट-
डार्क चॉकलेट में फ्लेनोल्‍ड होते हैं, जो रक्‍तवा‍हिनियों को अधिक लचीला बनाने में मदद करते हैं। एक शोध के अनुसार डार्क चॉकलेट का सेवन करने वाले 18 फीसदी लोगों ने रक्‍तचाप में कमी आने की बात कही।
कॉफी-
रक्‍तचाप पर कैफीन के असर को लेकर वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। कुछ का मानना है कि कैफीन और रक्‍तचाप में कोई संबंध नहीं है, वहीं कुछ इससे असहमत हैं। इनके मुताबिक कैफीन रक्‍चाप को बढ़ाता है और रक्‍तवाहिनियों को संकरा कर देता है इसके साथ ही यह तनाव का खतरा भी बढ़ा देता है। इसके कारण दिल को अधिक क्षमता से काम करना पड़ता है। इससे रक्‍तचाप का खतरा बढ़ जाता है।
चाय पियें-
गुलहड़ की चाय पीने से उच्‍च रक्‍तचाप की समस्‍या से बचा जा सकता है। डेढ़-दो महीने इस चाय का सेवन करने से रक्‍तचाप को सात प्‍वाइंट तक नीचे लाने में मदद मिलती है। कई शोध भी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि इस चाय का सेवन रक्‍तचाप को नियंत्रित करने में काफी मदद करता है।
आराम है जरूरी-
बेशक, जीवन में कामयाबी के लिए काम करना जरूरी है, लेकिन आराम की अहमियत को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक जो लोग सप्‍ताह में 41 घंटे से ज्‍यादा ऑफिस में गुजारते हैं, उन्‍हें उच्‍च रक्‍तचाप होने का खतरा 15 फीसदी तक बढ़ जाता है। हालांकि, आज के इस दौर में दफ्तर में काम करना बेहद जरूरी है, लेकिन इसकी भरपाई के लिए आपको व्‍यायाम करना चाहिए। आप जिम जा सकते हैं, खाना पका सकते हैं और सैर आदि के लिए कुछ समय निकाल सकते हैा। आप काम के घंटे समाप्‍त होने से आधा घंटा पहले ही अपना सारा काम निपटाने का लक्ष्‍य रखें ताकि आप समय पर घर जा सकें।
संगीत-
संगीत आपके रक्‍तचाप को कम करने में काफी मदद करता है। इटली स्थित फ्लोरेंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का दावा है कि सही स्‍वर लहरियां आपके उच्‍च रक्‍तचाप को कम करने में मदद करती हैं। रोजाना हल्‍की-हल्‍की सांसें लेते हुए यदि आप मद्धम संगीत सुनें तो आपको उच्‍च रक्‍तचाप और थकान आदि से मुक्ति मिलती है।

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