Ayurved का इतिहास
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इससे Ayurved की प्राचीनता सिद्ध होती है ।। अतः हम कह सकते हैं कि Ayurved की रचनाकाल ईसा पूर्व 3 हजार से 50 वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस- पास या साथ का ही है ।।
Ayurved के Historical Knowledge के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मत के According मृत्युलोक में Ayurved के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है ।। सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने Ayurved का अध्ययन किया ।।
फिर भारद्वाज ने Ayurved के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया ।। तदनतर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक 6 शिष्यों को Ayurved का उपदेश दिया ।। इन 6 शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का, जिसका प्रति संस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो Ayurved का आधार स्तंभ है ।।
सुश्रुत के According काशीराज देवीदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षियों के साथ सुश्रुत जब Ayurved का अध्ययन करने के लिए गये और उनसे आवेदन किया ।। उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन व्यक्तियों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद Ayurved को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।।
इस प्रकार धन्वन्तरि ने भी Ayurved का प्रकाशन बह्मदेव द्वारा ही प्रतिपादित किया हुआ माना है ।। पुनः भगवान धन्वन्तरि ने कहा कि ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, उनसे अश्विनीकुमार तथा उनसे इन्द्र ने Ayurved का अध्ययन किया ।।
चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में उलेख इतिहास एवं Ayurved के अवतरण के क्रम में क्रमशः आत्रेय सम्प्रदाय तथा धन्वन्तरि सम्प्रदाय ही मान्य है ।।
चरक अनुसार-आत्रेय सम्प्रदाय ।।
सुश्रुत अनुसार- धन्वन्तरि सम्प्रदाय ।।
Ayurved अर्थात जीवन रक्षा संबंधी ज्ञान है जो अनादि एवं परम्परागत है ।। और इसी परम्परागत प्राप्त ज्ञान को ही समय- समय आचार्यों ने लिपिबद्ध कर संहिताओं एवं अन्य ग्रन्थों की रचना कर Ayurved को जनहित में प्रतिपादित किया ।।
क्योंकि इतिहास परम्परागत अस्तित्व एवं ज्ञान का द्योतक है तथा परम्परागत ज्ञान का बोध कराता है, इसलिये 'ऐतिह्य' शब्द मात्र ही ज्ञान एवं ऐतिहासिक शब्द का बोध करा देता है ।। क्योंकि परम्परागत प्राप्त ज्ञान मौलिक प्रमाण माना जाता है जिसके वजह ही इसको आप्तोपदेश की संज्ञा दी गई है ।।
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