पित्त
यह स्पर्श और गुण में उष्ण होता है, दूसरे शब्दों में अग्नि रूप होता है और द्रव (liquid) रूप में होता है। इसका रंग पीला और नीला होता है। यह सत्त्वगुण प्रधान होता है, रस में कटु (चरपरा) और तिक्त (कड़वा) होता है तथा गंदे होने पर खट्टा बन जाता है।
पित्त प्रकृति के लक्षण
पित्त प्रकृति के व्यक्ति के बाल Time से पहले ही सफेद हो जाते हैं, but वह बुद्धिमान् होता है। उसे पसीना अधिक आता है। उसके स्वभाव में क्रोध अधिक होता है और इस तरह का मनुष्य निद्रावस्था में चमकीली चीजें देखता है।
पित्त के स्थान और कार्य
अग्नाशय (पक्वाशय के मध्य) में अग्नि रूप (पाचक रूप) परिमाण की अवस्था में होता है। इसको पाचक पित्त कहते हैं। यह चतुर्दिक आहार को पचाता है। इसका उलेख इस प्रकार भी हो सकता है:
त्वचा (त्वचा) में जो पित्त रहता है, वह त्वचा में कांति (प्रभा)की उत्पत्ति करता है और body की बाहरी त्वचा पर लगाये हुये लेप और अभ्यंग को पचाता (शोषण करता) है। यह body के तापमान को स्थिर रखता है। इसको श्राजक पित्त कहते हैं।
जो पित्त दोनों आंखों में रहकर (कृष्ण-पीतादि)रूपोें का ज्ञान देता हैै, उसको आलोचक (दिखाने वाला) पित्त कहा जाता है। जो पित्त हृदय में रहकर मेधा (धारणाशक्ति) और प्रज्ञा (बुद्धि) को देता है, वह ‘साधक’ पित्त होता है।
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