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Tuesday, 17 March 2015

Heart Disease

हृदय रोग


       शरीर का सबसे मूल्यवान् अंग है। इसकी धड़कन की अवस्था देखकर ही हम किसी के बीमार व्यक्ति या निबीमार व्यक्ति होने की पुष्टि करते हैं। यह हृदय ही सारे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन् युक्त खून को पहुँचाने की जिम्मेदारी निर्वहन करता है। इसके लिये उसे पर्याप्त ऊर्जा की जरूरत होती है। जब यह शक्ति कम हो जाया करती है या उसकी आपूर्ति में गतिरोध आने लगता है, तो बहुत से परेशानियाँ खड़ी होने लगती हैं।
हृदय असंख्य पतली - पतली नसों और मांसपेशियों से युक्त एक गोल लम्बवत् खोखला मांस पिण्ड होता है।
हृदय, दूसरे शब्दों में दिल
       हृदय असंख्य पतली - पतली नसों और मांसपेशियों से युक्त एक गोल लम्बवत् खोखला मांस पिण्ड होता है। इसके अन्दर चार खण्ड (पार्ट) होते हैं और प्रत्येक खण्ड में एक ऑटोमैटिक वाल्व लगा होता है। इससे पीछे से आया हुआ खून उस खण्ड में इकट्ठा होकर आगे तो जाता है, but वापस आने से पहले वाल्व बन्द हो जाता है, जिसकी वजह से वह खून body के सभी भागों में चला जाता है। ऐसा हृदय के चारों भागों में चलता होता है। जब इन ऑटोमैटिक वाल्वों में खराबी आ जाती है, तो खून पूरी मात्रा में आगे नहीं जा पाता और कुछ वापस हो जाता है, इससे खून सारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है और कई प्रकार की परेशानियाँ खड़ी होती हैं। हृदय पर अतिरिक्त बोझ पड़ने लगता है। जिसकी वजह से उसमें अचानक तीव्र दर्द उठता है, जो असहनीय होता है। यह दर्द सीने के बीच के हिस्से में होता हुआ बायीं बाजू, गले व जबड़े की तरफ जाता है। 
कारण 
     अधिक चर्बीयुक्त आहार Daily लेने से वह चर्बी नसों में इकट्ठी होती जाती है और धमनियों में सिकुड़न या छेद हो जाता है इससे खून संचार धीमा हो जाता है, जिसकी वजह से हृदय में अतिरिक्त दबाव बढ़ जाता है और body में खून प्रवाह की कमी हो जाया करती है। इस अवस्था में जब हम तेज - तेज चलते हैं, सीढ़ियाँ चढ़ते है या कोई weight उठाते है, तब हमें अधिक ऊर्जा की अवश्यक पड़ती है।

Monday, 16 March 2015

Pandu-Rog-Piliya

पाण्डु रोग (पीलिया-Jaundice) 


चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है।
       चरक ने लिखा है, बादी करने वाले अन्नपानादि सेवन करने और उपवास आदि करने से वायु कुपित होकर कष्टसाध्य पाण्डु रोग उत्पन्न करती है। इसमें शरीर का रंग रूखा और काला रंग मिला सा बन जाता है। शरीर में दर्द होता है, सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है, कपकपी होती है, पसलियों और सिर में दर्द होता है, मल सूख जाता है और मुहं में विरसता होती है। सूजन, कमजोरी और अफारा होता है। सुश्रुत ऋषि कहते हैं कि वायु के पाण्डु रोग में आंखों में पीलापन लिये ललाई होती है।
(2) पित्त पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पित्त प्रधान पाण्डु रोग में बीमार व्यक्ति का रंग हरा या पीला होता है, ज्वर, दाह, उल्टी, मूर्छा और प्यास होती है तथा मल-मूत्र पीले होते हैं। बीमार व्यक्ति का मुंह कड़वा रहता है, वह कुछ भी खाना नहीं चाहता तथा गर्म और खट्टे पदार्थ सहन नहीं कर सकता। उसे खट्टी डकारें आती है। अन्न विदग्ध होने से शरीर में विद्रोह होता है। बदन से बदबू आती है, मल पतला उतरता है, शरीर कमजोर हो जाता है और सामने अंधेरा महसूस होता है। बीमार व्यक्ति शीतल पदार्थों या ठण्ड को पसन्द करता है।   
(3) कफज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण
      चरक ने लिखा है, कफकारी पदार्थांे से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को बिगाड़कर कफ का पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। इसमें भारीपन, तन्द्रा, उल्टी, सफेद रंग होना, लार गिरना, रोंए खड़े होना, थकान महसूस होना, बेहोशी, भ्रम, श्वास, आलस्य, अरुचि, आवाज रुकना, गला बैठना, मूत्र, नेत्र और विष्ठा का सफेद होना, रूखे, कड़वे और खट्टे पदार्थांे का अच्छा लगना, सूजन और मुँह का स्वाद नमकीन सा रहना-ये लक्षण होते हैं। 
(4) सन्निपातज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      यह सब प्रकार के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य के गंदे हुये तीनों दोषों से उपर्युक्त तीनों दोषों के लक्षणों वाला, अत्यन्त असह्य घोर पाण्डु रोग होता है। सन्निपात के पाण्डु रोग वाले को तन्द्रा, आलस्य, सूजन, उल्टी, खांसी, पतले दस्त, ज्वर, मोह, प्यास, ग्लानि और इन्द्रियों की शक्ति का नाश, जैसे लक्षण होते हैं।   
(5) मिट्टी खाने से हुये पाण्डु के लक्षण 
      जिस मनुष्य का मिट्टी खाने का स्वभाव पड़ जाता है, उसके वात, पित्त और कफ कुपित हो जाते हैं। कसैली मिट्टी से वायु कुपित होती है, खारी मिट्टी से पित्त कुपित होता है और मीठी मिट्टी से कफ कुपित होता है। खारी मिट्टी पेट में जाकर रसादिक धातुओं को रूखा कर देती है। जब रूखापन उत्पन्न हो जाता है, तब जो अन्न खाया जाता है, वह भी रूखा बन जाता है। फिर वही मिट्टी पेट में पहुँचकर बिना पके रस को रस बहाने वाली नसों में ले जाकर नसों की राह बन्द कर देती है। जब खून बहाने वाली नसों की राहें रुक जाती हैं, शरीर की कान्ति, तेज और ओज कम हो जाते है, तब पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पाण्डु रोग होने से बल, वर्ण और अग्नि का नाश होता है।
 ऐलोपैथी के अनुसार:- 
      ऐलोपैथी में पीलिया या कामला को जॉण्डिस( रंनदकपबम ) कहते हैं। इसमें आंखों के सफेद पटल, त्वचा तथा श्लेष्माला कला का रंग पीला बन जाता है। यह पीलापन खून में पाये जाने वाले एक रंजक पदार्थ ‘बिलिरुबिन‘ (पित्त-अरुण) की अधिकता से होता है। लाल खून कण बनने की क्रिया में ही कोई गड़बड़ी हो जाया करती है तथा यकृत सही ढंग से काम नहीं करता। 
लक्षण
        पहले आंखों का सफेद होना फिर चेहरा, गर्दन, हाथ-पैर, और पूरे शरीर में पीलापन हो जाना, तालू भी पीला हो जाता है, लम्बी अवधि तक रहने वाले पीलिया में त्वचा का रंग गहरे हरे रंग का बन जाता है। मल अधिक मात्रा में होता है। पसीना भी पीला रंग का होता है। नाड़ी धीमी चलती है तथा आसपास की सभी चीजें पीली दिखाई देती हैं।   
पाण्डु रोग के पहले के लक्षण 
      जब पाण्डु होने वाला होता है, तब त्वचा का फटना, बारम्बार थूकना, अंगों का जकड़ना, मिट्टी खाने पर मन चलना, आंखों पर सूजन आना, मल और मूत्र का पीला होना तथा अन्न का न पचना-ये लक्षण पहले ही नजर आते हैं। 
पीलिया रोग निवारण अनुभूत नुस्खे  
(1)  फूल फिटकरी का चूर्ण (Powder) 20Grams लेकर उसकी 21पुड़िया बना लिजिएं। एक पुड़िया की आधी औषधि को morning मलाई निकले 100 grams दही में चीनी मिलाकर खाली पेट morning खा लिजिएं। इसी प्रकार रात को सोते Time बकाया आधी पुड़िया खा लिजिएं। इस प्रकार 21दिन लगातार औषधि खाने से पीलिया रोग सही हो जाता हैं। 
नोट - 50Grams सफेद फिटकरी गर्म तवा में डालकर भून लिजिएं। जब उसके अन्दर का जल सूख जाये, तो उसे के साथ पीस लें और रख लिजिएं, वह ही फूल फिटकरी है। जब तक मरीज यह औषधि खाता है, तब तक यदि गन्ने का रस मिल सके, तो जरूर पियें। यह योग पूर्णतः परीक्षित है। 
(2) कुटक 1तोला, मुनक्का 1तोला, त्रिफला आधा तोला को रात को जल में भिगोएं। morning के साथ पीस लें और दिन में दो बार चीनी मिलाकर 21दिन लगातार लेते रहने से पीलिया में आराम मिलता है। 
(3)  मूली के पत्तों के 100Grams रस में 20Grams चीनी मिलाकर पिलायें। साथ ही मूली, सन्तरा, पपीता, तरबूज, अंगूर, टमाटर खाने को दें। साथ ही गन्ने का रस पिलायेें और पेट साफ रख दें। पीलिया में आराम जरूर मिलेगा।
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Saturday, 14 March 2015

Saikadon bemariyon ki jad pet ke kiden

सैकड़ों बीमारियों की जड़ पेट के कीडे़


कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़।  कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़। बाहर के कीडे़ सर में मैल और body में पसीने की कारण से जन्मते हैं, जिन्हें जूँ, लीख और चीलर आदि नामों से जानते हैं। अन्दर के कीड़े तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम शौच से उत्पन्न होते हैं, जो गुदा में ही रहते हैं और गुदा द्वार के आसपास काटकर खून चूसते हैं। इन्हे चुननू आदि बहुत से नामों से जानते हैं। जब यह अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। दूसरे तरह के कीडे़ कफ के गंदे होने पर उत्पन्न होते हैं, जो 6 प्रकार के होते हैं। ये पेट में रहते हैं और उसमें हर ओर घूमते हैं। जब ये अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। तीसरे तरह के कीडे़ खून के गंदे होने पर उत्पन्न हो सकते हैं, ये सफेद व बहुत ही बारीक होते हैं और खून के साथ साथ चलते हुये हृदय, फेफडे़, मस्तिष्क आदि में पहुँचकर उनकी दीवारों में घाव बना देते हैं। इससे सूजन भी आ सकती है और यह सभी अंग प्रभावित होने लगते हैं। इनके खून में ही मल विसर्जन के वजह खून भी धीरे-धीरे गंदे होने लगता है, जिसकी वजह से कोढ़ से संबंधित बहुत से रोग होने का बना रहता है।

     इस सम्पूर्ण संसार में मनुष्य का शरीर सर्वश्रेष्ठ है। इसलिये हर तरह से हमें इसकी रक्षा करनी चाहिये। but, मनुष्य अपनी क्षणिक मानसिक तृप्ति के लिये तरह तरह के सडे़-गले भोजन जो body के लिये नुक्सान दायक हैं, खाता होता है। इससे शरीर में बहुत से प्रकार के कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं और यही शरीर की Mostly बीमारियों के जनक बनते हैं। ये
      एलोपैथिक चिकित्सा के अनुसार अमाशय के कीड़े खान-पान की अनियमितता के वजह उत्पन्न होते हैं,जो 6 प्रकार के होते हैं। 1- राउण्ड वर्म 2- पिन वर्म 3- हुक वर्म 5-व्हिप वर्म 6-गिनी वर्म आदि प्रकार के कीडे़ जन्म लेते हैं।  
कीडे़ क्यों उत्पन्न होते हैं  बासी और मैदे की बनी चीजें अधिकता से खाने, अधिक मीठा गुड़-चीनी अधिकता से खाने, दूध या दूध से बनी अधिक चीजें खाने, उड़द और दही वगैरा के बने भोजन अधिक मात्रा में खाने, अजीर्ण में भोजन करने, दूध और दही के साथ साथ नमक लगातार खाने, मीठा रायता जैसे पतले पदार्थ अत्यधिक पी लेने से मनुष्य शरीर में कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं। 
कीडे़ उत्पन्न होने के लक्षण और बीमारियाँ  body के अन्दर मल, कफ व खून में बहुत से प्रकार के कीडे़  उत्पन्न होते हैं। इनमें खासकर बड़ी आंत में उत्पन्न होने वाली फीता कृमि (पटार) अधिक खतरनाक होती है।
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Friday, 13 March 2015

Kaph Prakop Aur Shaman

कफ प्रकोप और शमन


कफ प्रकृति के व्यक्ति की बुद्धि गंभीर होती है।
मीठा, चिकना, ठंडा तथा गुरु पाकी आहारों के सेवन से सुबह के समय में भोजन करने के बाद में परिश्रम न करने से कफ प्रकुपित होता है और उपरोक्त कारणों के विपरीत आचरण करने से शान्त होता है।
कफ प्रकृति के लक्षण- 
कफ प्रकृति के व्यक्ति की बुद्धि गंभीर होती है। शरीर मोटा होता है तथा बाल चिकने होते हैं। उसके Body में बल अधिक होता हैं, निद्रावस्था में जलाशयों (नदी, तालाब आदि) को देखता है, अथवा उसमें तैरता है। 
कफ रोग निवारक औषधियां  
1-सर्दी व जुकाम 

  • काली मिर्च का चूर्ण (Powder) 1 gram सुबह में खाली पेट जल के साथ Daily लेते रहने से सर्दी जुकाम की Problem दूर होती है। 
  • दो लौंग कच्ची, दो लौंग भुनी हुई को के साथ पीस लें और शहद में मिलाकर सुबह में खाली पेट और रात को खाने के आधा घंटे के बाद लिजिएं, कफ वाली खांसी में आराम आ जायेगा। 
2- श्वासनाशक कालीहल्दी 
कालीहल्दी को जल में घिसकर 1 spoon लेप बनायंे। साथ ही 1 spoon शहद के साथ सुबह में खाली पेट औषधि morning 60 दिन खाने से दमा रोग में आराम बन जाता है।
3- कफ पतला हो तथा सूखी खांसी सही हो
शिवलिंगी, पित्त पापड़ा, जवाखार, पुराना गुड़, यह सभी बराबर भाग लेकर पीसें और जंगली बेर के बराबर गोली बनाइयें। एक गोली मुहं में रखकर उसका दिन में 2-3 time रस चूसें। यह कफ को पतला करती है, जिसकी वजह से कफ बाहर निकल जाता है तथा सूखी खांसी भी सही होती है।  
4- दमा रोग
20 grams गौमूत्र अर्क में 20 grams शहद मिलाकर Daily सुबह में खाली पेट 90 दिन तक पी लेने से दमा रोग में आराम बन जाता है। इसे लगातार भी लिया जा सकता है, दमा, टी.वी. हृदय रोग और समस्त उदर रोगों में भी लाभदायक है।
5- कुकुर खांसी
धीमी आंच में लोहे के तवे पर बेल की पत्तियों को डालकर भूनते-भूनते जला डालिजिएं। फिर उन्हें के साथ पीस लें और ढक्कन बन्द डिब्बे में रख लिजिएं और दिन में Three or Four Times सुबह, दोपहर, शाम और रात सोते Time एक माशा मात्रा में 10 grams शहद के साथ चटायें, कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुर खांसी ठीक हो जाया करती है। यह औषधि हर प्रकार की खांसी में लाभ करती है।
6- गले का कफ
पान का पत्ता 1 नग, हरड़ छोटी 1 नग, हल्दी आधा Grams, अजवायन 1 gram, काला नमक जरूरत के अनुसार, एक गिलास जल में डालकर पकायें आधा गिलास रहने पर गरम-गरम दिन में दो बार पियें । इससे कफ पतला होकर निकल जायेगा। रात को सरसों के तेल की मालिश गले तथा छाती व पसलियों में करें।
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Thursday, 12 March 2015

Pitt prakop aur upchar

पित्त प्रकोप और उपचार



विदाहि ( वंश, करीरादि पित्त प्रकोपक ), कटु (तीक्ष्ण), अम्ल (खट्टे) और अत्युष्ण भोजनों (खानपानादि) के सेवन से
        विदाहि ( वंश, करीरादि पित्त प्रकोपक ), कटु (तीक्ष्ण), अम्ल (खट्टे) और अत्युष्ण भोजनों (खानपानादि) के सेवन से, अत्यधिक धूप अथवा अग्नि सेवन से, क्षुधा और प्यास के रोकने से, अन्न के पाचन काल में, दोपहर में और आधी रात के Time उपरोक्त कारणों से पित्त का कोप ( पित्त का दुष्ट ) होता है। इन कारणों के विपरीत (उल्टा) आचरण करने से और विपरीत समयों में पित्त का शमन होता है। 

 पित्त से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए औषधि

1- शतावरी का रस दो तोला में मधु पांच Grams मिलाकर पी लेने से पित्त से संबंधित दर्द ठीक होता है।
2- हरड,़ बहेड़ा, आंवला, अमलतास की फली का गूदा, इन चारों औषधियों (Ayurvedic Medicines) के काढे़ में खांड़ और शहद मिलाकर पी लेने से खूनपित्त और पित्त से संबंधित दर्द (नाभिस्थान अथवा पित्त और पित्त से संबंधित दर्द ) नाभिस्थान अथवा पित्त वाहिनियों में पित्त संचित और अवरुद्ध होने से उत्पन्न होने वाले दर्द को अवश्य दूर करता है। 
नोट- काढ़ा बनाने के लिए औषधि के मिश्रण से 16 गुना जल डालकर मंद आंच में पकाइयें जब जल एक चौथाई बच जाये, तो उसे ठंडा करके पीना चाहिये। इस काढ़ा की मात्रा चार तोला के आसपास रखनी चाहिए।  
3- पीपल (गीली) चरपरी होने पर भी कोमल और शीतवीर्य होने से पित्त को बनाती है।
4- खट्टा आंवला, लवण रस और सेंधा नमक भी शीतवीर्य होने से पित्त को बनाती है।
5- गिलोय का रस कटु और उष्ण होने पर भी पित्त को बनाता है।
6- हरीतकी (पीली हरड़) 25 grams, मुनक्का 50 grams, दोनों को सिल पर बारीक के साथ पीस लें और उसमें 75 grams बहेड़े का चूर्ण (Powder) मिला लिजिएं। चने के बराबर गोलियां बनाकर Daily सुबह के समय ताजा जल से दो या तीन गोली लें। इसके सेवन से समस्त पित्त रोगों का शमन होता है। हृदय रोग, खून के रोग, विषम ज्वर, पाण्डु-कामला, अरुचि, उबकाई, कष्ट, प्रमेह, अपरा, गुल्म आदि अनेक ब्याधियाँ नष्ट होती हैं।
7- 10 grams आंवला रात को जल में भिगो दें। सुबह के समय आंवले को मसलकर छान लिजिएं। इस जल में थोड़ी मिश्री और जीरे का चूर्ण (Powder) मिलाकर लें। तमाम पित्त रोगों की रामबाण औषधि है। इसका प्रयोग 15-20 दिन करना चाहिए।
8- शंखभस्म 1Grams, सोंठ का चूर्ण (Powder) आधा Grams, आँवला का चूर्ण आधा Grams, इन तीनों औषधियों (Ayurvedic Medicines) को शहद में मिलाकर सुबह में खाली पेट और शाम को खाने के एक घण्टे बाद लेने से अम्लपित्त दूर होता है।
नोट- वैसे तो सभी नुस्खे पूर्णतः निरापद हैं, but फिर भी इन्हें किसी अच्छे वैद्य से समझकर व सही औषधियों का चयन कर उचित मात्रा में लें, तो ही अच्छा रहेगा। गलत रूप से किसी औषदि का सेवन नुक्सान दायक भी हो सकता है।
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