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Wednesday, 25 March 2015

Ayurvedic Medicines ke liye Mapan Pranali

Ayurvedic Medicines के लिए मापन प्रणाली 


Ayurved में औषधियों (Ayurvedic Medicines) के माप हैं
अधिक्तर देखा जाता है कि Ayurved में औषधि या नुस्खे बताते Time औषधि के जो माप बताए जाते हैं वो जल्दी से कोई समझ नहीं पाता है क्योंकि Ayurved में औषधियों (Ayurvedic Medicines) के माप हैं वो पुराने समय से चले आ रहें हैं और आज माप अंग्रेजी मापन प्रणाली पर आधारित है इसलिये जरुरी है कि किसी भी औषधि का प्रयोग करने से पहले उसका परिमाण भली प्रकार ज्ञात हो। इसी को ध्यान में रखते हुए में आज आपके सामने पुराने मापन प्रणाली और नई मापन प्रणाली में परिवर्तित करके बता रहा हूँ।
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HIGH BLOOD PRESSER

HIGH BLOOD PRESSER के लिए Ayurvedic Treatment



रात को तांबे के बर्तन में पाँव किलो जल रखें और उसमें असली
उच्च Blood Pressure की बीमारी हमारे समाज में खान पान और तनाव युक्त जीवन के वजह लगातार बढ़ रही है। Ayurved में इस बीमारी को ठीक के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं जिनको में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनका यदि प्रयोग किया जाए तो लाभ हो सकता है। 
1. रात को तांबे के बर्तन में पाँव किलो जल रखें और उसमें असली* रुद्राक्ष के आठ दाने डालकर रख दें। रोजाना सवेरे उषापान के रूप में वह जल पी जाएँ। इसके morning प्रयोग से तीन महिने में हि Blood Pressure कम हो जाएगा। आप उन्ही दानों को तीन महिने तक प्रयोग कर सकते हैं हाँ रुद्राक्ष को 2-3 सप्ताह बाद ब्रुश से साफ़ करके धुप में सुखा लिजिएं।
2. 250 50 grams ताज़ी हरी लौकी छिलके सहित 500 grams जल में प्रेशर कुकर में डालकर आग पर रख दें और एक सीटी बजने पर आग पर से उतार लिजिएं। मसलकर छान कर (बिना इसमें कुछ मिलाएं) इसे सूप कि तरह गर्म गर्म पी लिजिएं। जरूरत के अनुसार सुबह खाली पेट लगातार 3-4 दिन तक रौजाना एक Dose लिजिएं।
3. एक तांबे की कटोरी में 10-15 grams मैथी दाना रात को जल में भिगो दें। सुबह में मैथी दाना निकालकर वह जल पी लिजिएं। Blood Pressure कि अवस्था में आवश्यक परहेज के साथ यह प्रयोग करने से चाहे Blood Pressure बढ़ा हुआ हो या कम हो सामान्य होने लगेगा। साथ हि इस प्रयोग से मधुमेह तथा मोटापा में भी लाभ होता है।
4. उच्च Blood Pressure में रात्री में सोने से पहले बादाम के तेल की पांच पांच बूंदों का नस्य लेने से भी ना केवल Blood Pressure बल्कि सिर के अनेक रोगों में भी लाभ होता है।
* शुद्ध रुद्राक्ष की पहचान यह है कि शुद्ध रुद्राक्ष जल में डूब जाता है।
Related Links: आयुर्वेदिक औषधियां   |   हृदय रोग    |    हार्टफेल   |    निम्न रक्तचाप  

Tuesday, 24 March 2015

Motapa Ghatane ke liye kuchh ayurvedic Nuskhe

मोटापा घटाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे


आज में आपके सामनें मोटापे को दूर भगाने के लिए कुछ सामान्य Ayurvedic नुस्खे लेकर आया हूँ।
मोटापे को लेकर कई लोग परेशान रहतें हैं और इससे छुटकारा पाना चाहतें हैं। कुछ उपाय ढूंढकर उनको प्रयोग में लातें हैं but कई बार ऐसा देखा गया है कि हर उपाय हर व्यक्ति के लिए लाभदायक नहीं हो पाता है जिसके वजह उनको निराश होने कि जरूरत नहीं है और उनको दुसरा उपाय अपनाना चाहिए। आज में आपके सामनें मोटापे को दूर भगाने के लिए कुछ सामान्य Ayurvedic नुस्खे लेकर आया हूँ। जिनका प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है। 
1.मूली के रस में थोडा नमक और निम्बू का रस मिलाकर रोजाना पी लेने से मोटापा कम हो जाता है और body सुडौल हो जाता है।
2.गेहूं, चावल,बाजरा और साबुत मूंग को समान मात्रा में लेकर सेककर इसका दलिया बना लिजिएं। इस दलिये में अजवायन 20 grams तथा सफ़ेद तिल 50 grams भी मिला दें। 50 grams दलिये को 400 मि.ली.जल में पकाएं। स्वादानुसार सब्जियां और हल्का नमक मिला लिजिएं। रोजाना एक महीनें तक इस दलिये के सेवन से मोटापा और मधुमेह में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
3.अश्वगंधा के एक पत्ते को हाथ से मसलकर गोली बनाकर Daily सुबह-दोपहर-शाम को भोजन से एक घंटा पहले या खाली पेट जल के साथ निगल लिजिएं। एक सप्ताह के daily सेवन के साथ फल,सब्जियों,दूध,छाछ और जूस पर रहते हुए कई किलो weight कम हो सकता है।
4.आहार में गेहूं के आटे और मैदा से बने सभी भोजनों का सेवन एक महिने तक बिलकुल बंद रखें। इसमें रोटी भी शामिल है। अपना पेट पहले के 4-6 दिन तक केवल दाल,सब्जियां और मौसमी फल खाकर ही भरें। दालों में आप सिर्फ छिलके वाली मूंग कि दाल, अरहर या मसूर कि दाल ही ले सकतें हैं चनें या उडद कि दाल नहीं। सब्जियों में जो इच्छा करें वही ले सकते हैं। गाजर,मूली,ककड़ी,पालक,पतागोभी,पके टमाटर और हरी मिर्च लेकर सलाद बना लिजिएं। सलाद पर मनचाही मात्रा में कालीमिर्च,सैंधा नमक,जीरा बुरककर और निम्बू निचोड़कर खाएं। बस गेहूं कि बनी रोटी छोडकर दाल,सब्जी,सलाद और एक गिलास छाछ का भोजन करते हुए घूंट घूंट करके पीते हुए पेट भरना चाहिए। इसमें मात्रा अधिक भी हो जाए तो चिंता कि कोई बात नहीं। इस प्रकार 6-7 दिन तक खाते रहें। इसके बाद गेहूं कि बनी रोटी कि जगह चना और जौ के बने आटे कि रोटी खाना शुरू कीजिए। 5 किलो देशी चना और 1 kg जौ को मिलकर साफ़ करके पिसवा लिजिएं। 6-7 दिन तक इस आटे से बनी रोटी आधी मात्रा में और आधी मात्रा में दाल,सब्जी,सलाद और छाछ लेना शुरू कीजिए। एक महीने बाद गेहूं कि रोटी खाना शुरू कर सकते हैं but शुरुआत एक रोटी से करते हुए धीरे धीरे बढाते जाएँ। भादों के महीने में छाछ का प्रयोग नहीं किया जाता है इसलिये इस महीनें में छाछ का प्रयोग नां कीजिए।
5. एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर उसको छाले और  1-1  spoon की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन time नियमित लेने करने से मोटापा दूर होता है।
6. चित्रक कि जड़ का चूर्ण (Powder) 1 gram की  मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम  नियमित  रूप से सेवन करने और खानपान का परहेज करनें से भी मोटापा दूर हो सकता है।

Ulti se rahat ke liye ayurvedic nuskhe

उलटी से राहत के लिए Ayurvedic नुस्खे


www.jkhealthworld.com ke nuskhe
कई बार उलटी कि समस्या गलत खान पान, अपच अथवा किसी कारण से हो जाया करती है जिसके वजह परेशान होना पड़ता है। जिसके लिए Ayurved में कुछ उपाय दिए गऐ हैं जिनमें से कुछ उपाय आपको बता रहा हूँ 
1.       अदरक और प्याज के रस 1-1 spoon कि मात्रा में मिलाकर पिलाने से उलटी में लाभ मिलता है।
2.      अनार के बीज के साथ पीस लें और उसमें थोड़ी सी कालीमिर्च और नमक मिलाकर खाने से पित के वजह होने वाली उल्टी और घबराहट में आराम मिलता है।
3.      अमलतास के 5-6 बीज जल में के साथ पीस लें और पिलाने से कोई नुक्सान दायक खाई हुई चीज उलटी होकर बाहर निकल जाती है।
4.     पुदीना और इलायची समान मात्रा में मिलकर सेवन कराने से भी उल्टी और उबकाई में लाभ मिलता है।
5.     1 spoon चन्दन का चूर्ण (Powder) और समान ही मात्रा में आंवले का रस और शहद को मिलाकर पिलाने से उल्टी का कष्ट दूर होता है।

Monday, 23 March 2015

Gharelu Dardnashak Ayurvedic Tel

घरेलु दर्दनाशक आयुर्वेदिक तेल


कई बार हमारे घुटनों,कमर, पीठ और पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है।
कई बार हमारे घुटनों,कमर, पीठ और पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है। ऐसे ही दर्द को ठीक करने के लिए बाजार में कई प्रकार के Ayurvedic तेल मिलते हैं जिनसे मालिश करने से दर्द ठीक हो जाता है। आज ऐसा ही तेल बनाने कि विधि आपको बताने जा रहा हूँ जो सस्ता, असान और अचूक है और घर पर आराम से बनाया जा सकता है। 
सबसे पहले 40 grams पुदीना, 40 grams अजवायन और 40 grams ही कपूर लें। साफ़ बोतल में पुदीना डाल दें और उसके बाद अजवायन और कपूर को साथ पीस लें और उस बोतल में डाल दें जिसमें आगे पुदीना है। उसके बाद ढक्कन लगाकर हिला दें और रख दें। कुछ देर बाद तीनों चीजें मिलकर द्रव्य रूप में बदल जायेगी और इसे ही अमृतधारा कहते हैं।
अब 200 grams लहसुन लिजिएं और उसके छिलके उतार लें तथा लहसुन कि कलियों के छोटे छोटे टुकड़े कर लिजिएं। अब 1 kg सरसों का तेल कड़ाही में डालकर आंच पर गर्म होने के लिए रख दें। जब तेल पूरी तरह से गर्म हो जाए तो तेल को निचे उतार लें तथा ठंडा होने के लिए रख दें। जब तेल पूरा ठंडा हो जाए तो उसमें लहसुन के टुकड़े डालकर उसको फिर आंच पर चढाकर तेज और मंदी आंच में गर्म कीजिए। तेल को इतना पकाए कि लहसुन कि कलियाँ जलकर काली हो जाए। तेल के बर्तन को आंच पर से उतार लें तथा निचे रखे और उसमें गर्म तेल में ही 80 grams रतनजोत ( रतनजोत एक वृक्ष कि छाल होती है ) डाल दें इससे तेल का रंग लाल हो जाएगा।
तेल के ठंडा होने पर कपडे से छाले और किसी साफ़ बोतल में भर लिजिएं। अब इस पकाए हुए तेल अमृतधारा और 400 grams तारपीन का तेल मिलाकर अच्छी प्रकार से हिला दें। बस मालिश के लिए दर्दनाशक लाल तेल तैयार हो गया जिसका सेवन आप जब चाहे कर सकते हैं।

Cancer

कैंसर


तीय स्तर तक पहुँचे रोग का इलाज संभव नही है। यदि कुछ प्रतिशत संभव भी है, तो इलाज बहुत मंहगा है
         कैंसर का नाम सुनते ही शरीर में एक सिहरन सी हो जाया करती है। प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर भय व्याप्त हो जाता है क्योंकि यह प्राणघातक बीमारी है। इसे लाइलाज माना जाता है। प्रथम और द्वितीय स्तर तक पहुँचे कैंसर का इलाज तो संभव हो सका है, लेकिन तृतीय स्तर तक पहुँचे रोग का इलाज संभव नही है। यदि कुछ प्रतिशत संभव भी है, तो इलाज बहुत मंहगा है कि आम व्यक्ति के बस में नहीं है। फिर भी चिकित्सा जगत् अपनी कोशिश बराबर कर रहा है। निरंतर नई-नई शोधें कर रहा है। नई-नई विधियों से कैंसर निर्मूलन की कोशिश कर रहा है। कुछ हद तक सफल भी हुआ है, but पूर्ण सफलता से अभी दूर है। इसका कारण है कि प्रथम स्तर में कोई कैंसर को समझ नहीं पाता, जिसकी कारण से वह उसका उचित इलाज नहीं हो पाता। यदि जिसने इस disease का परीक्षण भी करा लिया तो औषधियां इतनी महंगी है कि वह उनका सेवन नहीं कर पाता। इसलिये यह disease बढ़ता ही जाता है और अंततोगत्वा बीमार व्यक्ति को निगल जाता है।  
कैंसर के वजह-  
1- कैसर के विषय की सम्पूर्ण जानकारी का अभाव । 
2- अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही की कारण से body के अन्दर और बाहर की साफ-सफाई न रखना ।
3- तम्बाकू और पान मसाला (गुटका) आदि का लगातार सेवन।  
4- बीड़ी, सिगरेट, गांजा आदि का सेवन । 
5- शराब के लगातार सेवन से ।  
6- पेट के कीडे़ (कृमि) से अमाशय या बड़ी आँत का कैंसर । 
7- मांसाहार के लगातार सेवन से। 
जब व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट, गांजा आदि का लगातार सेवन करता है तो फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, जिसके वजह खून पूर्णतः फिल्टर नही हो पाता। यही प्रकिया लगातार बनी रहने की कारण से रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और कोई भी रोग खड़ा बन जाता है। ऐसा ही लगातार शराब के पी लेने से होती है। पानमसाला और गुटका में पड़े रसायनों से मुँह में रियेक्शन के अनुसार हुए घाव कैंसर का रूप ले लेते हैं। इसी प्रकार से पेट के कीड़े भी कैंसर का वजह बनते हैं, जब पेट में कीड़े पड़ जाते हैं और वह वहां रहते हुए अपना आकार बढ़ा लेते हैं, साथ ही बहुत सारे हो जाते हैं, ऐसी अवस्था में जब आप भोजन करते हैं तो वह कीड़े उस खाने को भी खा जाते हैं और मल विर्सजन करते हैं, वही जहरीला मल आंतो द्वारा खींचकर खून में मिला दिया जाता है, जिसकी वजह से खून में खराबी आ जाती है, साथ ही जब कीड़ों को कुछ खाने को नहीं मिलता तो वह आँतों की दीवारों को काटते हैं और वहां घाव उत्पन्न कर देते हैं। जैसे ही हमारे खाने के साथ कैंसर के बैक्टीरिया पेट में जाते हैं और उस घाव के सम्पर्क में आते हैं तो वह घाव कैंसर में परिवर्तित हो जाता हैं। इसी प्रकार मांसाहार से भी कैंसर फैलता है। जब कोई पशु-पक्षी कैंसर से पीड़ित होता है, हम उसे मारकर उसका मांस खाते हैं तो इस मांस के साथ कैंसर के जीवाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कैंसर का वजह बनते हैं।  
कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण 
1-  शरीर में कहीं भी घाव हो, जो भरता न हो। 
2-  body के किसी भी अंग से खून या मवाद लगातार आना। 
3-  body के किसी अंग या स्तन में गांठ का होना तथा धीरे-धीरे बढ़ना और उसे दबाने से दर्द होना। 
4-  लगातार अपच की Problem रहना। 
5-  खाना निगलने में कठिनाई होना। 
6-  लगातार मिचली की Problem होना।
7-  पेट में लगातार दर्द बना रहना। 
8-  नाक में सूजन आना, सांस लेने में समस्या तथा लगातार नाक में दर्द। 
     यदि ऐसी परिअवस्था आपके साथ हो रही है, तो इसे सामान्य न मानकर किसी योग्य कैंसर विशेषज्ञ से जांच अवश्य करा लिजिएं। यदि कैंसर की स्थिति निकले तो तुरन्त चिकित्सक की सलाह पर औषदि का सेवन करें। कैंसर, प्रथम और द्वितीय स्टेज तक पूर्णतः सही हो सकता है। कैंसर विशेषज्ञ आपका कुछ खून परीक्षण, एक्सरे, अल्ट्रासाउण्ड या सी.टी. स्कैन व एम.आर.आई. जैसी जांचें करेंगे, तथा इसकी पूर्ण अवस्था समझने के लिए बायोप्सी परीक्षण कर आपको कैंसर की सही अवस्था बता देंगे। उसी According आपकी रेडियोथिरेपी या कीमोथिरेपी चिकित्सा की सलाह देंगे। यह चिकित्सा बहुत मंहगी है जिसे सभी नहीं अपना सकते हैं। 
      कैसर के प्रथम और द्वितीय स्टेज के बीमार व्यक्ति Ayurved चिकित्सा से भी पूर्णतः सही होते हैं। अवश्यक है, लगन और विश्वास से इन औषधियों (Ayurvedic Medicines) के सेवन की, इसमें पैसा भी कम खर्च होता है और साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं। अवश्यक है सही औषधियों के मिलने की और अच्छे वैद्य की देख रेख में औषधि सेवन की।   
कैंसर निवारक Ayurvedic औषधियाँ-  
1- कैंसर नासक चूर्ण (Powder)-
पारसपीपर के बीज की गिरी, शुद्ध कपूर, जावित्री, जीयापोता (पुत्रजीवा) की गिरी, नीमगिलोय का (स्वयं का बनाया हुआ), इन सभी औषधियों (Ayurvedic Medicines) के समभाग चूर्ण (Powder) को एक साथ मिलाकर एक बन्द डिब्बे में रख लिजिएं। Daily सुबह में खाली पेट आधा Grams औषधि के चूर्ण (Powder) को 10 grams शहद और 10 grams गौमूत्र अर्क के साथ रात को सोते Time लिजिएं। लगातार रोग पूर्णरूपेण सही होने तक लिजिएं। इस औषधि के खाने से पतले दस्त जाते हैं, उस अवस्था में औषधि की मात्रा कम कर दें पर औषधि रोके नहीं। यह औषधि मरीज के बलाबल के According कम या अधिक मात्रा में दी जा सकती हैं। इससे कैंसर की गांठ body के किसी भी हिस्से में होगी सही होगी व कैंसर का घाव भी सही होता है।  
2- कैंसर नासक जड़ी-  
      सहस्रमुरिया का एक पौधा Daily जल में के साथ पीस लें और साथ में 10 grams शहद व 15 नग तुलसी पत्र व 10 grams गौमूत्र अर्क को मिलाकर सुबह में खाली पेट बीमार व्यक्ति को खिलायें। यह औषधि लगातार रोग सही होने तक दें। body के किसी भी अंग में कैंसर की गाठं या घाव को सही करती है। साथ ही खूनरोहेड़ा की छाल 2 तोला को 100 grams जल में धीमी आंच में पकाकर, जब वह जल 25 grams रह जाय तो उसे शाम को सोते Time 10 grams शुद्ध शहद व 10 grams गौमूत्र अर्क के साथ मिलाकर पिलायें, रोग सही होने तक। बीमार व्यक्ति पूर्ण धैर्य व विश्वास के साथ ही औषधि का लें लाभ जरूर होगा। 
नोट- इसी खूनरोहेड़ा की Ayurved में रोहितारिष्ट नाम से औषधि बनाई जाती है।   
3-  गेंहूँ के जवारे से कैंसर का नास 
    सिद्ध मकरध्वज 5 grams, कृमि मुदगरस 5 grams, सितोपलादि चूर्ण (Powder) 60 grams, मुक्ता पिष्टी 3 Grams, त्रणकान्तमणि पिष्टी 10 grams, अभ्रकभस्म सहस्त्रपुटी 5 grams, महायोगराज गुग्गुल 5 grams, श्रृंगभस्म 2 Grams, हीरक भस्म 5 मि,ग्रा., स्वर्ण भस्म 5 मि.ग्रा., नीम गिलोय 10 grams, इन सभी औषधियों को के साथ पीस लें और मिला लिजिएं और 120 पुड़िया बना लिजिएं। एक पुड़िया औषधि को 20 grams गेंहूँ के जवारे का रस, 10 grams शुद्ध शहद, 10 grams गौमूत्र अर्क, 15 पत्ते तुलसी के साथ सुबह में खाली पेट औषधि दें। औषधि की मात्रा बीमार व्यक्ति के According कम या अधिक की जा सकती हैं। इससे शरीर में कही भी गांठ या घाव हो, सही होता है।
परहेज-  
       शराब, मांस, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गांजा आदि किसी भी तरह का नशा, गुटका, पान-मसाला, अधिक तली चीजें, अचार, लालमिर्च आदि का सेवन न करें। 
नोट - मरीज को औषधियों की पहचान न होने की कारण से इन औषधियों का सेवन किसी योग्य वैद्य की देख-रेख में ही लिजिएं। किसी औषधि का गलत तरीके से सेवन नुक्सान दायक भी हो सकता है इसके लिये लेखक जिम्मेदार नहीं होगा।
Related Links:    आयुर्वेद   |   अंगूर   |  डेंगू ज्वर   |   पेट के कीड़े    |   पीलिया औषधियों से उपचार

Saturday, 21 March 2015

Twacha Rog

त्वचारोग


इसमें खुजली इतनी होती है कि आप उसे खुजाते ही रहें और खुजाने के बाद जलन होती है, छोटे-छोटे दाने होते हैं
त्वचारोग एक कष्ट दायक बीमारी है, जो पूरे शरीर की त्वचा में कहीं भी उत्पन्न हो सकता है। अनियमित खान-पान, गंदे आहार, शरीर की Time-Time पर सफाई न होने और पेट में कृमि के पड़ जाने और लम्बे Time तक पेट में रहने के वजह उनका मल नसों द्वारा अवशोषित कर खून में मिलने से तरह तरह के त्वचारोग सहित शारीरिक अन्य बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं जो मनुष्य या अन्य जीवों के लिए बहुत  नुक्सान दायक होती है।
दाद (दद्रु) के लक्षण 
इसमें खुजली इतनी होती है कि आप उसे खुजाते ही रहें और खुजाने के बाद जलन होती है, छोटे-छोटे दाने होते हैं, त्वचा लाल रंग की मोटी चकत्तेदार हो जाती हैं। दाद अधिकतर जननांगों में जोड़ों के पास और जहाँ पसीना आता है व कपड़ा रगड़ता है, वहां पर होती है। वैसे यह शरीर में कहीं भी हो सकती है।  
खाज (खुजली) 
इसमें पूरे शरीर में सफेद रंग के छोटे-छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं। इन्हें फोड़ने पर जल जैसा liquid निकलता है जो पकने पर गाढ़ा बन जाता है। इसमें खुजली बहुत होती है, यह बहुधा हांथो की उंगलियों के जोड़ों में तथा पूरे शरीर में कहीं भी हो सकती है। इसको खुजाने को लगातार इच्छा होती है और जब खुजा देते है, तो बाद में असह्य जलन होती है तथा बीमार व्यक्ति को 24 घंटे चैन नहीं मिलता है। इसे छुतहा, संक्रामक, एक से दूसरे में जल्दी ही लगने वाला रोग भी कहा जाता है। बीमार व्यक्ति का तौलिया व चादर सेवन करने पर यह disease आगे चला जाता है, यदि बीमार व्यक्ति के हाथ में रोग हो और उससे हांथ मिलायें तो भी यह disease सामने वाले को बन जाता है।  
उकवत (एक्जिमा) -
दाद, खाज, खुजली जाति का एक रोग उकवत भी है, जो अधिक कष्टकारी है। रोग का स्थान लाल हो जाता है और उस पर छोटे-छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं। इसमें चकत्ते तो नही पड़ते but यह शरीर में कहीं भी बन जाता है। यह अधिकतर सर्दियों में होता है और गर्मियों में अधिकांशतया सही बन जाता है। अपवाद स्वरूप गर्मी में भी हो सकता है। यह दो तरह का होता है। एक सूखा और दूसरा गीला। सूखे से पपड़ी जैसी भूसी निकलती रहती है और गीले से मवाद जैसा निकलता होता है। यदि यह सर में हो जाये तो उस जगह के बाल झड़ने लगते हैं। यह शरीर में कहीं भी हो सकता है। 
गजचर्म 
    कभी-कभी body के किसी अंग की त्वचा हाथी के पांव के चमड़े की तरह मोटी, कठोर और रूखी हो जाया करती है। उसे गजचर्म कहते हैं।
चर्मदख 
    Body के जिस भाग का रंग लाल हो, जिसमें बराबर दर्द रहे, खुजली होती रहे और फोड़े फैलकर जिसका चमड़ा फट जाय तथा किसी भी पदार्थ का स्पर्श न सह सके, उसे चर्मदख कहते हैं।
विचर्चिका तथा विपादिका 
     इस disease में काली या धूसर रंग की छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, जिनमें से पर्याप्त मात्रा में मवाद  बहता है और खुजली भी होती है तथा शरीर में रूखापन  की कारण से हाथों की त्वचा फट जाती है, तो उसे विचर्चिका कहते हैं। यदि पैरों की त्वचा फट जाय और तीव्र दर्द हो, तो उसे विपादिता कहते हैं। इन दोनों में मात्र इतना ही भेद है।
पामा और कच्छु 
     यह भी अन्य त्वचा रोगों की तरह एक प्रकार की खुजली ही है। इसमें भी छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं। उनमें से मवाद निकलता है, जलन होती है और खुजली भी बराबर बनी रहती है। यदि यही फुन्सियां बड़ी-बड़ी और तीव्र दाहयुक्त हों तथा विशेष कमर या कूल्हे में हों, तो उसे कच्छू कहा जाता है।  
(1) दाद, खाज, खुजली 
(अ) आंवलासार गंधक को गौमूत्र के अर्क में मिलाकर Daily सुबह और शाम लगायें। इससे दाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है। 
(ब) शुद्ध किया हुआ आंवलासार गंधक 1 रत्ती को 10 grams गौमूत्र के अर्क के साथ 90 दिन लगातार पी लेने से समस्त त्वचा रोगों में लाभ होता है।  
(2) एक्जिमा (त्वचा रोगों में लगाने का महत्व) -
आंवलासार गंधक 50 grams, राल 10 grams, मोम (शहद वाला) 10 grams, सिन्दूर शुद्ध 10 grams, लेकर पहले गंधक को तिल के तेल में डालकर धीमी आंच पर गर्म करें। जब गन्धक तेल में घुल जाय, तो उसमें सिन्दूर व अन्य औषधियां powder करके मिला दें तथा सिन्दूर का कलर काला होने तक इन्हें पकायें और आग से नीचे उतार लें तथा गरम-गरम ही उसी बर्तन में घोंटकर मल्हम (Paste) जैसा बना लिजिएं। यह मल्हम एग्जिमा, दाद, खाज, खुजली, अपरस आदि समस्त त्वचा रोगों में लाभदायक है। यह मल्हम सही होने तक दोनों time लगायें।
(3) दाद, खाज, खुजली, एग्जिमा, अकौता, अपरस का मल्हम  
गन्धक-10 grams, पारा 3 Grams, मस्टर 3 Grams, तूतिया 3 Grams, कबीला 15 grams, रालकामा 15 grams, इन सब को कूट-के साथ पीस लें और कपड़छन करके एक शीशी में रख लिजिएं। दाद में मिट्टी के तेल (केरोसीन) में लेप बनाकर लगाऐं, खाज में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सुबह और शाम लगायें। अकौता एग्जिमा में नीम के तेल में मिलाकर लगायें। यह औषधि 10 दिन में ही सभी त्वचारोगों में पूरा आराम देती है।
(4)दाद, दिनाय -
चिलबिल (चिल्ला) पेड़ की पत्ती का रस केवल एक बार लगाने से दाद दिनाय या चर्म रोग सही बन जाता है। यदि अवश्यक पड़े तो दो या तीन time लगायें, अवश्य लाभ मिलेगा।  
(5) चर्म रोग नाशक अर्क  
शुद्ध आंवलासार गंधक, ब्रह्मदण्डी, पवार (चकौड़ा) के बीज, स्वर्णछीरी की जड़, भृंगराज का पंचांग, नीम के पत्ते, बाबची, पीपल की छाल, इन सभी को 100 -100 grams की मात्रा में लेकर जौ कुट कर शाम को 3 लीटर जल में भिगो दें। साथ ही 10 grams छोटी इलायची भी कूटकर डाल दें और morning इन सभी का अर्क निकाल लिजिएं। यह अर्क 10 grams की मात्रा में सुबह में खाली पेट मिश्री के साथ पी लेने से समस्त त्वचा रोगों में लाभ करता है। इसमें खून में आई खराबी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और खून शुद्ध बन जाता है। इसके सेवन से मुँह की झांई, आंखों के नीचे कालापन, मुहासे, फुन्सियां, दाद, खाज, खुजली, अपरस, अकौता, कुष्ठ आदि समस्त त्वचा रोगों में पूर्ण लाभदायक है।
खून शोधक  
(अ) रीठे के छिलके के powder में शहद मिलाकर चने के बराबर गोलियाँ बना लिजिएं। सुबह के समय एक गोली अधबिलोये दही के साथ और सायंकाल जल के साथ निगलं ले। उपदंश, खाज, खुजली, पित्त, दाद और चम्बल के लिए पूर्ण लाभपदायक है।
(ब) सिरस की छाल का powder 6 grams सुबह और शाम शहद के साथ 60 दिन लें। इससे सम्पूर्ण रक्तदोष सही होते हैं।
(स) अनन्तमूल, मूलेठी, सफेद मूसली गोरखमुण्डी, खूनचन्दन, शनाय और असगन्ध 100 -100 grams तथा सौंफ, पीपल, इलायची, गुलाब के फूल 50 -50 grams। सभी को जौकुट करके एक डिब्बे में भरकर रख लिजिएं और 1 spoon (10Grams) 200 grams जल में धीमी आंच में पकाएं और जब जल 50 grams रह जाय तब उसे छाले और  उसके दो भाग करके सुबह व शाम मिश्री मिलाकर पियें। यह क्वाथ खून विकार, उपदंश, सूजाख के उपद्रव, वातखून और कुष्ठबीमारी को दूर करता है।

Friday, 20 March 2015

Ayurved se Rog Nivaran

Ayurved से रोग निवारण


करेला (कड़वा वाला) का रस 50 Grams को निकालकर Daily सुबह में खाली पेट पीना चाहिये।
1. करेला (कड़वा वाला) का रस 50 Grams को निकालकर Daily सुबह में खाली पेट पीना चाहिये। इसके एक घण्टे बाद ही कुछ खाना चाहिए। इससे धीरे-धीरे Blood Pressure normal होने लगता है। 
2. गौमूत्र का अर्क यदि Daily सुबह में खाली पेट और रात को सोते Time 10-10 grams की मात्रा में Daily लिया जाये, तो भी Blood Pressure normal बन जाता है।  
3. अर्जुन की छाल का चूर्ण (Powder) 5 grams की मात्रा morning और 5 grams की मात्रा शाम को सोते Time लगातार लेने से Blood Pressure normal होता है और हृदय से संबंधित बीमारियों में पूर्ण लाभ मिलता है, यहाँ तक कि चिकित्सक ने यदि हृदय का ऑपरेशन भी बताया हो, तो उससे भी बचा जा सकता है। 
4. वृहद् वातचिन्तामणि रस 3 रत्ती की मात्रा morning शहद से लेने पर High Blood Pressure normal बन जाता है।
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High Blood Pressure se kaise bache

High Blood Pressure से कैसे बचें


1. नमक का सेवन कम करना चाहिये क्योंकि वैज्ञानिक प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि नमक अधिक खाने से Blood Pressure बढ़ता है, यदि जिसको पता चल चुका है कि उसे Blood Pressure है तो नमक की मात्रा खाने में कम करना चाहिये। 
2. धूम्रपान और शराब आदि पी लेने से शरीर की स्थिति अनियंत्रित होती है और ब्लडप्रेसर High होता है। इसलिये भूल कर भी ऐसी चीजों का सेवन न करें। बीड़ी, सिगरेट, गांजा, अफीम, चरस, हुक्का, आदि का धुआँ फेफड़े को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाता है और वही धुआँ आक्सीजन के साथ मिलकर खून में पहुंच कर उसे भी गंदे करता है, वही खून समस्त अंगो में जाकर उनको कमजोर बनाता है और इससे तरह तरह की बहुत से बीमारियाँ उत्पन्न होने लगती है। 
3. मानसिक उलझन से बचना चाहिये तथा अधिक मोटापा भी ब्लडप्रेसर High करता है। अतः मोटापा अधिक न बढ़ने दें। 
4. Blood Pressure के रोगियों को संतुलित भोजन करना चाहिये। हरी सब्जी अधिक मात्रा में खानी चाहिये और सलाद भी भरपूर मात्रा में लिजिएं तथा फास्ट फूड जैसी चीजे न खायें। घी तेल का सेवन कम मात्रा में करे और body की जरूरत से अधिक भोजन न करें। 
5. हल्के योगासन, प्राणयाम और ध्यान प्रक्रिया रोजाना करना चाहिए। भारी योगासन न करें but at least 30 minutes योगासन करने का Time अवश्य दें। इसके बाद सुखासन या जिस आसन में आप  समस्यां महसूस न करें, उसमें रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठ जाये और धीरे-धीरे गहरी सांस अन्दर तक लिजिएं और धीरे-धीरे बाहर कीजिएं। इस प्रकार 15से 30बार Daily करने का अभ्यास करें तथा फिर शांत चित्त होकर बैठ जायें और अपना ध्यान दोनों भौहों के मध्य आज्ञाचक्र में केन्द्रित करने की कोशिश करें और मन ही मन अपने शरीर (Body) में भाव रखें कि मेरा Blood Pressure सामान्य हो रहा है। यह प्रक्रिया at least 10से 20 minutes तक अवश्य करें। आप देखेंगे की आपका Blood Pressure सामान्य आने लगेगा। शरीर की कार्य करने की क्षमता बढ़ने लगेगी। 
6. उक्त खून चाप से कोलेस्ट्राल का अधिक संबंध नहीं है। but, यह हृदय रोग से जुड़ा है, इसलिये उक्त Blood Pressure के मरीजों को भोजन में सेचुरेटेड फैट (घी, मलाई, मांस, युक्त चर्बी, अंडा) आदि का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति मांसाहार, अंडा आदि का सेवन करता है उसका Blood Pressure निश्चय ही अनियंत्रित हो जाता है, जो body के लिये नुक्सान दायक है। इसलिये जो व्यक्ति मंासाहार, अंडा आदि का सेवन करता है उसका Blood Pressure निश्चय ही अनियंत्रित बन जाता है। यह body के लिये नुक्सान दायक है इसलिये मंासाहार का पूर्णतः त्याग करना चाहिये।

Thursday, 19 March 2015

High blood pressure

High Blood Pressure (उच्च Blood Pressure)


   
जन्म के Time मनुष्य का Blood Pressure सबसे कम होता है। जैसे -जैसे उम्र बढ़ती जाती है, Blood Pressure भी बढ़ता है।
मनुष्य का शरीर का प्रमुहं अंग हृदय है, जो उसके बहुत से अंगों में धमनियों के माध्यम से खून की आपूर्ति करता है ये धमनियाँ पेड़ की टहनियों की तरह हैं, जो समस्त शरीर से होते हुए आखिर में फेफड़े में पहुँचती हैं। वहाँ सांस के द्वारा कार्बन डाई आक्साईड निकलकर शुद्ध सांस द्वारा आक्सीजन शोषित होती है और समस्त शरीर में फैला कर शरीर का पोषण करती है। हृदय एक निश्चत दबाव में ही खून को समस्त शरीर में भेजता है इसकी एक minute में औसतन गति 72बार धड़कने की होती है जो एक स्वस्थ्य व्यक्ति में होती है और यही गति जब बढ़ने लगती है तो उसे High Blood Pressure के रूप में देखा जाता है। 
High Blood Pressure को बढ़ाने वाले कारण  
      जन्म के Time मनुष्य का Blood Pressure सबसे कम होता है। जैसे -जैसे उम्र बढ़ती जाती है, Blood Pressure भी बढ़ता है। व एक निश्चित दबाव में ही होता है। but, आज के प्रदूषण की कारण से शरीर में शुद्ध वायु का अभाव बन जाता है। इससे Blood Pressure बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषांे में High Blood Pressure अधिक होने की संभावना रहती है। यह Blood Pressure कुछ परिवारों में आनुवंशिक भी होता है। शराब पी लेने, धूम्रपान से तथा नमक अधिक सेवन से Blood Pressure अधिक होता है। कुछ औषधियां भी Blood Pressure High करती है। सबसे अधिक प्रभावक आज का खान-पान है जो, शरीर को पौष्टिकता कम और रासायनिक तत्त्व अधिक देता है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और यह High Blood Pressure का कारण बनता है।
Blood Pressure से होने वाली हानियाँ - 
       Body के हर भाग में पतली-पतली नस-नाड़ियाँ रहती हैं। जब Blood Pressure High होता है, तो इन पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। जो नाड़ी इस दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं, वे फट जाती हैं और खून बहना चालू हो जाता है। जिस प्रकार नाक के अन्दर की नाड़ी फटने से खून बहने लगता है जिसे आम बोल चाल मे नकसीर फूटना कहा जाता है। इसी प्रकार जब कोई कमजोर नाड़ी फेफड़े के अन्दर फूटती है तो कफ से खून आने लगता है। इसी प्रकार से मष्तिस्क की नसें भी फटती हैं। Blood Pressure के अधिक Time तक बढ़े रहने से महीन नसों की अन्दर की दीवारों में चर्बी के जमाब से वे कड़ी और संकरी हो जाया करती है। इससे body के बहुत से अंगों मंे खून की पूर्ति नहीं हो पाती है और उस अंग का रोग बन जाता है। यही बढ़ा Blood Pressure जब गुर्दे पर दबाव ड़ालता है, तो गुर्दे का कार्य प्रभावित होता है यहाँ तक कि गुर्दे फेल भी होने लगते हैं। बढ़े हुये Blood Pressure से आँखों की रोशनी भी प्रभावित होती है। यही दबाव लगातार जब हृदय पर पड़ता है, तो एन्जाइन Heart Attack की अवस्था बन जाती है। High Blood Pressure से व्यक्ति की उम्र घटने लगती है, सोचने समझने की शक्ति भी कम होने लगती है।

Hriday Rog ke lakshan

हृदय रोग के लक्षण 


     
धिक तेज चलने, सीढ़ियाँ चढ़ने या साइकिल आदि चलाने से सांस फूलना
अधिक तेज चलने, सीढ़ियाँ चढ़ने या साइकिल आदि चलाने से सांस फूलना, कमजोरी व थकान लगना, पसीना अधिक आना, सीने में दर्द होना, मिचली आना, पैरों में सूजन हो जाना, दिल की धड़कन बढ़ना, घबराहट होना, रात को नींद कम आना व अचानक खुलने पर नींद न आना आदि होने से समझ लिजिएं कि आपको हृदय रोग पकड़ रहा है। इसलिये Time रहते तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क करें। ऐलोपैथी में बहुत से औषधियां खून पतला करने की और हृदय को ताकत देने की हैं और जब यह औषधियें काम नहीं करती हैं तो आपरेशन ही अन्तिम विकल्प बचता है।
हृदय रोग निवारक Ayurvedic औषधियाँ - 
     जैसे ही हमें चिकित्सकों से यह पता चले की हम हृदय रोग की चपेट में आ चुके हैं तो किसी योग्य Ayurvedic डाक्टर या वैद्य द्वारा निर्देशित औषधियों का सेवन चालू करें। आज भी Ayurved में इतनी क्षमता है कि वह हृदय रोग को ठीक कर सकता है। Ayurved रोग को दबाता नहीं, अपितु उसे समूल नष्ट करता है।

Wednesday, 18 March 2015

Hirdy rog se sambandhit beemariyan

हृदय रोग से संबंधित बीमारियाँ  


गुर्दे की कई प्रकार की बीमारियों की कारण से खून की सफाई का कार्य बाधित होता है
1-उच्च Blood Pressure - 
       उच्च Blood Pressure के लगातार बने रहने से हृदय में अतिरिक्त दबाव बना रहता हैै, जिसकी वजह से हृदय रोग होने की संभावना अधिक रहती है। यदि Time रहते औषधियों के माध्यम से Blood Pressure को सामान्य कर लिया जाये, तो हृदय रोग होने की संभावना घट जाती है।
2- गुर्दे की बीमारियाँ 
       गुर्दे की कई प्रकार की बीमारियों की कारण से खून की सफाई का कार्य बाधित होता है और हृदय में गंदे खून के बार - बार जाने से उसकी मांसपेशियाँ कमजोर पड़ने लगती है, जो हृदय रोग का कारण बनती हैं। 
3- डायबिटीज दूसरे शब्दों में मधुमेह
        जब डायबिटीज के वजह खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और लम्बे Time तक बराबर बनी रहती है, तो धीरे - धीरे यही हृदय रोग का कारण बनती है। 
4- मोटापे की अधिकता  
       जब अनियमित भोजन से या कई प्रकार की हारमोनल रोगों से व्यक्ति का मोटापा बढ़ जाता है तब भी हृदय रोग सामान्य से अधिक होने की संभावना रहती है। 
5- पेट में कीडे़ (कृमि) होने पर   
      जब पेट में गंदे खान - पान की कारण से कृमि पड़ जाते हैं और Time से इलाज न मिलने की कारण से पर्याप्त बड़े हो जाते है, तब वे वहां रहते हुए आपका खाना भी खाते हैं तथा गंदे मल भी विसर्जित करते हैं और वही खून हृदय में लगातार जाता है जो हृदय रोग का कारण बनता है इसलिये वर्ष में एक बार कीड़े मारने की औषधि अवश्य खानी चाहिये ।
6- खान-पान  
    तनावमुक्त रहते हुए, शाकाहारी भोजन को पूर्णतः अपने जीवन में अपनाकर बहुत हद तक हृदय रोग से बचा जा सकता है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रख दें। 
1- शरीर की जरूरत के According ही कम चिकनाईयुक्त आहार लेना चाहिए। 40वर्ष की उम्र  
के बाद जरूरत से अधिक खाना स्वास्थ्य की दृष्टि से नुक्सान दायक है। नसों में अत्यधिक चर्बी के जमाव को रोकने के लिए चोकरयुक्त आटे की रोटियाँ, अधिक मात्रा में हरी सब्जियाँ, सलाद, चना, फल आदि का सेवन करें। 
2- खाने में लाल मिर्च, तीखे मसाला आदि एक निर्धारित मात्रा में ही सब्जी में डालिजिएं तथा अधिक तली चीजें, तेल युक्त अचार आदि बहुत कम मात्रा में लिजिएं। एक बार में अधिक खाना न खाकर जरूरत के अनुसार थोड़ा-थोड़ा कई बार खाना चाहिए। 
3- सूर्योदय के पहले उठना, धीरे - धीरे टहलना, स्नान आदि करके हल्के योग और ध्यान आदि Daily करना चाहिये। 
4- मांसाहार, अण्डे, शराब व धूम्रपान, तम्बाकू आदि से पूर्णतः अपने आपको बचाना चाहिए। ये हृदय और body के लिये अत्यन्त नुकशान दायक हैं इसलिये इनका भूल कर भी सेवन न करें। 
5- मानसिक तनाव को दूर रख दें। इससे हृदय में दबाव पड़ता है। सदा ही प्रसन्न रहने की कोशिश करें, क्रोध बिल्कुल न करें, सदा हंसते रहें।

Tuesday, 17 March 2015

Heart Disease

हृदय रोग


       शरीर का सबसे मूल्यवान् अंग है। इसकी धड़कन की अवस्था देखकर ही हम किसी के बीमार व्यक्ति या निबीमार व्यक्ति होने की पुष्टि करते हैं। यह हृदय ही सारे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन् युक्त खून को पहुँचाने की जिम्मेदारी निर्वहन करता है। इसके लिये उसे पर्याप्त ऊर्जा की जरूरत होती है। जब यह शक्ति कम हो जाया करती है या उसकी आपूर्ति में गतिरोध आने लगता है, तो बहुत से परेशानियाँ खड़ी होने लगती हैं।
हृदय असंख्य पतली - पतली नसों और मांसपेशियों से युक्त एक गोल लम्बवत् खोखला मांस पिण्ड होता है।
हृदय, दूसरे शब्दों में दिल
       हृदय असंख्य पतली - पतली नसों और मांसपेशियों से युक्त एक गोल लम्बवत् खोखला मांस पिण्ड होता है। इसके अन्दर चार खण्ड (पार्ट) होते हैं और प्रत्येक खण्ड में एक ऑटोमैटिक वाल्व लगा होता है। इससे पीछे से आया हुआ खून उस खण्ड में इकट्ठा होकर आगे तो जाता है, but वापस आने से पहले वाल्व बन्द हो जाता है, जिसकी वजह से वह खून body के सभी भागों में चला जाता है। ऐसा हृदय के चारों भागों में चलता होता है। जब इन ऑटोमैटिक वाल्वों में खराबी आ जाती है, तो खून पूरी मात्रा में आगे नहीं जा पाता और कुछ वापस हो जाता है, इससे खून सारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है और कई प्रकार की परेशानियाँ खड़ी होती हैं। हृदय पर अतिरिक्त बोझ पड़ने लगता है। जिसकी वजह से उसमें अचानक तीव्र दर्द उठता है, जो असहनीय होता है। यह दर्द सीने के बीच के हिस्से में होता हुआ बायीं बाजू, गले व जबड़े की तरफ जाता है। 
कारण 
     अधिक चर्बीयुक्त आहार Daily लेने से वह चर्बी नसों में इकट्ठी होती जाती है और धमनियों में सिकुड़न या छेद हो जाता है इससे खून संचार धीमा हो जाता है, जिसकी वजह से हृदय में अतिरिक्त दबाव बढ़ जाता है और body में खून प्रवाह की कमी हो जाया करती है। इस अवस्था में जब हम तेज - तेज चलते हैं, सीढ़ियाँ चढ़ते है या कोई weight उठाते है, तब हमें अधिक ऊर्जा की अवश्यक पड़ती है।

Monday, 16 March 2015

Pandu-Rog-Piliya

पाण्डु रोग (पीलिया-Jaundice) 


चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है।
       चरक ने लिखा है, बादी करने वाले अन्नपानादि सेवन करने और उपवास आदि करने से वायु कुपित होकर कष्टसाध्य पाण्डु रोग उत्पन्न करती है। इसमें शरीर का रंग रूखा और काला रंग मिला सा बन जाता है। शरीर में दर्द होता है, सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है, कपकपी होती है, पसलियों और सिर में दर्द होता है, मल सूख जाता है और मुहं में विरसता होती है। सूजन, कमजोरी और अफारा होता है। सुश्रुत ऋषि कहते हैं कि वायु के पाण्डु रोग में आंखों में पीलापन लिये ललाई होती है।
(2) पित्त पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      चरक ने लिखा है, पित्तकारक आहार-विहार से पित्त कुपित होकर रक्तादि धातुओं को गंदे करके पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पित्त प्रधान पाण्डु रोग में बीमार व्यक्ति का रंग हरा या पीला होता है, ज्वर, दाह, उल्टी, मूर्छा और प्यास होती है तथा मल-मूत्र पीले होते हैं। बीमार व्यक्ति का मुंह कड़वा रहता है, वह कुछ भी खाना नहीं चाहता तथा गर्म और खट्टे पदार्थ सहन नहीं कर सकता। उसे खट्टी डकारें आती है। अन्न विदग्ध होने से शरीर में विद्रोह होता है। बदन से बदबू आती है, मल पतला उतरता है, शरीर कमजोर हो जाता है और सामने अंधेरा महसूस होता है। बीमार व्यक्ति शीतल पदार्थों या ठण्ड को पसन्द करता है।   
(3) कफज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण
      चरक ने लिखा है, कफकारी पदार्थांे से कफ कुपित होकर रक्तादि धातुओं को बिगाड़कर कफ का पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। इसमें भारीपन, तन्द्रा, उल्टी, सफेद रंग होना, लार गिरना, रोंए खड़े होना, थकान महसूस होना, बेहोशी, भ्रम, श्वास, आलस्य, अरुचि, आवाज रुकना, गला बैठना, मूत्र, नेत्र और विष्ठा का सफेद होना, रूखे, कड़वे और खट्टे पदार्थांे का अच्छा लगना, सूजन और मुँह का स्वाद नमकीन सा रहना-ये लक्षण होते हैं। 
(4) सन्निपातज पाण्डु (पीलिया) के लक्षण 
      यह सब प्रकार के अन्नों के सेवन करने वाले मनुष्य के गंदे हुये तीनों दोषों से उपर्युक्त तीनों दोषों के लक्षणों वाला, अत्यन्त असह्य घोर पाण्डु रोग होता है। सन्निपात के पाण्डु रोग वाले को तन्द्रा, आलस्य, सूजन, उल्टी, खांसी, पतले दस्त, ज्वर, मोह, प्यास, ग्लानि और इन्द्रियों की शक्ति का नाश, जैसे लक्षण होते हैं।   
(5) मिट्टी खाने से हुये पाण्डु के लक्षण 
      जिस मनुष्य का मिट्टी खाने का स्वभाव पड़ जाता है, उसके वात, पित्त और कफ कुपित हो जाते हैं। कसैली मिट्टी से वायु कुपित होती है, खारी मिट्टी से पित्त कुपित होता है और मीठी मिट्टी से कफ कुपित होता है। खारी मिट्टी पेट में जाकर रसादिक धातुओं को रूखा कर देती है। जब रूखापन उत्पन्न हो जाता है, तब जो अन्न खाया जाता है, वह भी रूखा बन जाता है। फिर वही मिट्टी पेट में पहुँचकर बिना पके रस को रस बहाने वाली नसों में ले जाकर नसों की राह बन्द कर देती है। जब खून बहाने वाली नसों की राहें रुक जाती हैं, शरीर की कान्ति, तेज और ओज कम हो जाते है, तब पाण्डु रोग उत्पन्न होता है। पाण्डु रोग होने से बल, वर्ण और अग्नि का नाश होता है।
 ऐलोपैथी के अनुसार:- 
      ऐलोपैथी में पीलिया या कामला को जॉण्डिस( रंनदकपबम ) कहते हैं। इसमें आंखों के सफेद पटल, त्वचा तथा श्लेष्माला कला का रंग पीला बन जाता है। यह पीलापन खून में पाये जाने वाले एक रंजक पदार्थ ‘बिलिरुबिन‘ (पित्त-अरुण) की अधिकता से होता है। लाल खून कण बनने की क्रिया में ही कोई गड़बड़ी हो जाया करती है तथा यकृत सही ढंग से काम नहीं करता। 
लक्षण
        पहले आंखों का सफेद होना फिर चेहरा, गर्दन, हाथ-पैर, और पूरे शरीर में पीलापन हो जाना, तालू भी पीला हो जाता है, लम्बी अवधि तक रहने वाले पीलिया में त्वचा का रंग गहरे हरे रंग का बन जाता है। मल अधिक मात्रा में होता है। पसीना भी पीला रंग का होता है। नाड़ी धीमी चलती है तथा आसपास की सभी चीजें पीली दिखाई देती हैं।   
पाण्डु रोग के पहले के लक्षण 
      जब पाण्डु होने वाला होता है, तब त्वचा का फटना, बारम्बार थूकना, अंगों का जकड़ना, मिट्टी खाने पर मन चलना, आंखों पर सूजन आना, मल और मूत्र का पीला होना तथा अन्न का न पचना-ये लक्षण पहले ही नजर आते हैं। 
पीलिया रोग निवारण अनुभूत नुस्खे  
(1)  फूल फिटकरी का चूर्ण (Powder) 20Grams लेकर उसकी 21पुड़िया बना लिजिएं। एक पुड़िया की आधी औषधि को morning मलाई निकले 100 grams दही में चीनी मिलाकर खाली पेट morning खा लिजिएं। इसी प्रकार रात को सोते Time बकाया आधी पुड़िया खा लिजिएं। इस प्रकार 21दिन लगातार औषधि खाने से पीलिया रोग सही हो जाता हैं। 
नोट - 50Grams सफेद फिटकरी गर्म तवा में डालकर भून लिजिएं। जब उसके अन्दर का जल सूख जाये, तो उसे के साथ पीस लें और रख लिजिएं, वह ही फूल फिटकरी है। जब तक मरीज यह औषधि खाता है, तब तक यदि गन्ने का रस मिल सके, तो जरूर पियें। यह योग पूर्णतः परीक्षित है। 
(2) कुटक 1तोला, मुनक्का 1तोला, त्रिफला आधा तोला को रात को जल में भिगोएं। morning के साथ पीस लें और दिन में दो बार चीनी मिलाकर 21दिन लगातार लेते रहने से पीलिया में आराम मिलता है। 
(3)  मूली के पत्तों के 100Grams रस में 20Grams चीनी मिलाकर पिलायें। साथ ही मूली, सन्तरा, पपीता, तरबूज, अंगूर, टमाटर खाने को दें। साथ ही गन्ने का रस पिलायेें और पेट साफ रख दें। पीलिया में आराम जरूर मिलेगा।
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Saturday, 14 March 2015

Saikadon bemariyon ki jad pet ke kiden

सैकड़ों बीमारियों की जड़ पेट के कीडे़


कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़।  कीडे़ दो प्रकार के होते हैं। प्रथम, बाहर के कीडे़ और द्वितीय, भीतर के कीडे़। बाहर के कीडे़ सर में मैल और body में पसीने की कारण से जन्मते हैं, जिन्हें जूँ, लीख और चीलर आदि नामों से जानते हैं। अन्दर के कीड़े तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम शौच से उत्पन्न होते हैं, जो गुदा में ही रहते हैं और गुदा द्वार के आसपास काटकर खून चूसते हैं। इन्हे चुननू आदि बहुत से नामों से जानते हैं। जब यह अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। दूसरे तरह के कीडे़ कफ के गंदे होने पर उत्पन्न होते हैं, जो 6 प्रकार के होते हैं। ये पेट में रहते हैं और उसमें हर ओर घूमते हैं। जब ये अधिक बढ़ जाते हैं, तो ऊपर की ओर चढ़ते हैं, जिसकी वजह से डकार में भी शौच की सी बदबू आने लगती है। तीसरे तरह के कीडे़ खून के गंदे होने पर उत्पन्न हो सकते हैं, ये सफेद व बहुत ही बारीक होते हैं और खून के साथ साथ चलते हुये हृदय, फेफडे़, मस्तिष्क आदि में पहुँचकर उनकी दीवारों में घाव बना देते हैं। इससे सूजन भी आ सकती है और यह सभी अंग प्रभावित होने लगते हैं। इनके खून में ही मल विसर्जन के वजह खून भी धीरे-धीरे गंदे होने लगता है, जिसकी वजह से कोढ़ से संबंधित बहुत से रोग होने का बना रहता है।

     इस सम्पूर्ण संसार में मनुष्य का शरीर सर्वश्रेष्ठ है। इसलिये हर तरह से हमें इसकी रक्षा करनी चाहिये। but, मनुष्य अपनी क्षणिक मानसिक तृप्ति के लिये तरह तरह के सडे़-गले भोजन जो body के लिये नुक्सान दायक हैं, खाता होता है। इससे शरीर में बहुत से प्रकार के कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं और यही शरीर की Mostly बीमारियों के जनक बनते हैं। ये
      एलोपैथिक चिकित्सा के अनुसार अमाशय के कीड़े खान-पान की अनियमितता के वजह उत्पन्न होते हैं,जो 6 प्रकार के होते हैं। 1- राउण्ड वर्म 2- पिन वर्म 3- हुक वर्म 5-व्हिप वर्म 6-गिनी वर्म आदि प्रकार के कीडे़ जन्म लेते हैं।  
कीडे़ क्यों उत्पन्न होते हैं  बासी और मैदे की बनी चीजें अधिकता से खाने, अधिक मीठा गुड़-चीनी अधिकता से खाने, दूध या दूध से बनी अधिक चीजें खाने, उड़द और दही वगैरा के बने भोजन अधिक मात्रा में खाने, अजीर्ण में भोजन करने, दूध और दही के साथ साथ नमक लगातार खाने, मीठा रायता जैसे पतले पदार्थ अत्यधिक पी लेने से मनुष्य शरीर में कीडे़ उत्पन्न हो जाते हैं। 
कीडे़ उत्पन्न होने के लक्षण और बीमारियाँ  body के अन्दर मल, कफ व खून में बहुत से प्रकार के कीडे़  उत्पन्न होते हैं। इनमें खासकर बड़ी आंत में उत्पन्न होने वाली फीता कृमि (पटार) अधिक खतरनाक होती है।
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Friday, 13 March 2015

Kaph Prakop Aur Shaman

कफ प्रकोप और शमन


कफ प्रकृति के व्यक्ति की बुद्धि गंभीर होती है।
मीठा, चिकना, ठंडा तथा गुरु पाकी आहारों के सेवन से सुबह के समय में भोजन करने के बाद में परिश्रम न करने से कफ प्रकुपित होता है और उपरोक्त कारणों के विपरीत आचरण करने से शान्त होता है।
कफ प्रकृति के लक्षण- 
कफ प्रकृति के व्यक्ति की बुद्धि गंभीर होती है। शरीर मोटा होता है तथा बाल चिकने होते हैं। उसके Body में बल अधिक होता हैं, निद्रावस्था में जलाशयों (नदी, तालाब आदि) को देखता है, अथवा उसमें तैरता है। 
कफ रोग निवारक औषधियां  
1-सर्दी व जुकाम 

  • काली मिर्च का चूर्ण (Powder) 1 gram सुबह में खाली पेट जल के साथ Daily लेते रहने से सर्दी जुकाम की Problem दूर होती है। 
  • दो लौंग कच्ची, दो लौंग भुनी हुई को के साथ पीस लें और शहद में मिलाकर सुबह में खाली पेट और रात को खाने के आधा घंटे के बाद लिजिएं, कफ वाली खांसी में आराम आ जायेगा। 
2- श्वासनाशक कालीहल्दी 
कालीहल्दी को जल में घिसकर 1 spoon लेप बनायंे। साथ ही 1 spoon शहद के साथ सुबह में खाली पेट औषधि morning 60 दिन खाने से दमा रोग में आराम बन जाता है।
3- कफ पतला हो तथा सूखी खांसी सही हो
शिवलिंगी, पित्त पापड़ा, जवाखार, पुराना गुड़, यह सभी बराबर भाग लेकर पीसें और जंगली बेर के बराबर गोली बनाइयें। एक गोली मुहं में रखकर उसका दिन में 2-3 time रस चूसें। यह कफ को पतला करती है, जिसकी वजह से कफ बाहर निकल जाता है तथा सूखी खांसी भी सही होती है।  
4- दमा रोग
20 grams गौमूत्र अर्क में 20 grams शहद मिलाकर Daily सुबह में खाली पेट 90 दिन तक पी लेने से दमा रोग में आराम बन जाता है। इसे लगातार भी लिया जा सकता है, दमा, टी.वी. हृदय रोग और समस्त उदर रोगों में भी लाभदायक है।
5- कुकुर खांसी
धीमी आंच में लोहे के तवे पर बेल की पत्तियों को डालकर भूनते-भूनते जला डालिजिएं। फिर उन्हें के साथ पीस लें और ढक्कन बन्द डिब्बे में रख लिजिएं और दिन में Three or Four Times सुबह, दोपहर, शाम और रात सोते Time एक माशा मात्रा में 10 grams शहद के साथ चटायें, कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुर खांसी ठीक हो जाया करती है। यह औषधि हर प्रकार की खांसी में लाभ करती है।
6- गले का कफ
पान का पत्ता 1 नग, हरड़ छोटी 1 नग, हल्दी आधा Grams, अजवायन 1 gram, काला नमक जरूरत के अनुसार, एक गिलास जल में डालकर पकायें आधा गिलास रहने पर गरम-गरम दिन में दो बार पियें । इससे कफ पतला होकर निकल जायेगा। रात को सरसों के तेल की मालिश गले तथा छाती व पसलियों में करें।
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Thursday, 12 March 2015

Pitt prakop aur upchar

पित्त प्रकोप और उपचार



विदाहि ( वंश, करीरादि पित्त प्रकोपक ), कटु (तीक्ष्ण), अम्ल (खट्टे) और अत्युष्ण भोजनों (खानपानादि) के सेवन से
        विदाहि ( वंश, करीरादि पित्त प्रकोपक ), कटु (तीक्ष्ण), अम्ल (खट्टे) और अत्युष्ण भोजनों (खानपानादि) के सेवन से, अत्यधिक धूप अथवा अग्नि सेवन से, क्षुधा और प्यास के रोकने से, अन्न के पाचन काल में, दोपहर में और आधी रात के Time उपरोक्त कारणों से पित्त का कोप ( पित्त का दुष्ट ) होता है। इन कारणों के विपरीत (उल्टा) आचरण करने से और विपरीत समयों में पित्त का शमन होता है। 

 पित्त से संबंधित दोषों को दूर करने के लिए औषधि

1- शतावरी का रस दो तोला में मधु पांच Grams मिलाकर पी लेने से पित्त से संबंधित दर्द ठीक होता है।
2- हरड,़ बहेड़ा, आंवला, अमलतास की फली का गूदा, इन चारों औषधियों (Ayurvedic Medicines) के काढे़ में खांड़ और शहद मिलाकर पी लेने से खूनपित्त और पित्त से संबंधित दर्द (नाभिस्थान अथवा पित्त और पित्त से संबंधित दर्द ) नाभिस्थान अथवा पित्त वाहिनियों में पित्त संचित और अवरुद्ध होने से उत्पन्न होने वाले दर्द को अवश्य दूर करता है। 
नोट- काढ़ा बनाने के लिए औषधि के मिश्रण से 16 गुना जल डालकर मंद आंच में पकाइयें जब जल एक चौथाई बच जाये, तो उसे ठंडा करके पीना चाहिये। इस काढ़ा की मात्रा चार तोला के आसपास रखनी चाहिए।  
3- पीपल (गीली) चरपरी होने पर भी कोमल और शीतवीर्य होने से पित्त को बनाती है।
4- खट्टा आंवला, लवण रस और सेंधा नमक भी शीतवीर्य होने से पित्त को बनाती है।
5- गिलोय का रस कटु और उष्ण होने पर भी पित्त को बनाता है।
6- हरीतकी (पीली हरड़) 25 grams, मुनक्का 50 grams, दोनों को सिल पर बारीक के साथ पीस लें और उसमें 75 grams बहेड़े का चूर्ण (Powder) मिला लिजिएं। चने के बराबर गोलियां बनाकर Daily सुबह के समय ताजा जल से दो या तीन गोली लें। इसके सेवन से समस्त पित्त रोगों का शमन होता है। हृदय रोग, खून के रोग, विषम ज्वर, पाण्डु-कामला, अरुचि, उबकाई, कष्ट, प्रमेह, अपरा, गुल्म आदि अनेक ब्याधियाँ नष्ट होती हैं।
7- 10 grams आंवला रात को जल में भिगो दें। सुबह के समय आंवले को मसलकर छान लिजिएं। इस जल में थोड़ी मिश्री और जीरे का चूर्ण (Powder) मिलाकर लें। तमाम पित्त रोगों की रामबाण औषधि है। इसका प्रयोग 15-20 दिन करना चाहिए।
8- शंखभस्म 1Grams, सोंठ का चूर्ण (Powder) आधा Grams, आँवला का चूर्ण आधा Grams, इन तीनों औषधियों (Ayurvedic Medicines) को शहद में मिलाकर सुबह में खाली पेट और शाम को खाने के एक घण्टे बाद लेने से अम्लपित्त दूर होता है।
नोट- वैसे तो सभी नुस्खे पूर्णतः निरापद हैं, but फिर भी इन्हें किसी अच्छे वैद्य से समझकर व सही औषधियों का चयन कर उचित मात्रा में लें, तो ही अच्छा रहेगा। गलत रूप से किसी औषदि का सेवन नुक्सान दायक भी हो सकता है।
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Pitt

पित्त


यह सत्त्वगुण प्रधान होता है
यह स्पर्श और गुण में उष्ण होता है, दूसरे शब्दों में अग्नि रूप होता है और द्रव (liquid) रूप में होता है। इसका रंग पीला और नीला होता है। यह सत्त्वगुण प्रधान होता है, रस में कटु (चरपरा) और तिक्त (कड़वा) होता है तथा गंदे होने पर खट्टा बन जाता है। 
पित्त प्रकृति के लक्षण
    पित्त प्रकृति के व्यक्ति के बाल Time से पहले ही सफेद हो जाते हैं, but वह बुद्धिमान् होता है। उसे पसीना अधिक आता है। उसके स्वभाव में क्रोध अधिक होता है और इस तरह का मनुष्य निद्रावस्था में चमकीली चीजें देखता है।  
पित्त के स्थान और कार्य
        अग्नाशय (पक्वाशय के मध्य) में अग्नि रूप (पाचक रूप) परिमाण की अवस्था में होता है। इसको पाचक पित्त कहते हैं। यह चतुर्दिक आहार को पचाता है। इसका उलेख इस प्रकार भी हो सकता है:
        त्वचा (त्वचा) में जो पित्त रहता है, वह त्वचा में कांति (प्रभा)की उत्पत्ति करता है और body की बाहरी त्वचा पर लगाये हुये लेप और अभ्यंग को पचाता (शोषण करता) है। यह body के तापमान को स्थिर रखता है। इसको श्राजक पित्त कहते हैं।
        जो पित्त दोनों आंखों में रहकर (कृष्ण-पीतादि)रूपोें का ज्ञान देता हैै, उसको आलोचक (दिखाने वाला) पित्त कहा जाता है। जो पित्त हृदय में रहकर मेधा (धारणाशक्ति) और प्रज्ञा (बुद्धि) को देता है, वह ‘साधक’ पित्त होता है।
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Vaata Rog

वात रोग


यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात बीमारी है या बाय और यह किस प्रकार का है ?
Ayurvedic ग्रन्थों के According वात 80 प्रकार का होता है और इसी से सामंजस्य रखता हुआ एक और बीमारी है जिसे बाय या वायु कहते हैं। यह 84 प्रकार का होता है। यहाँ question यह उठता है कि जब वात और वायु के इतने प्रकार हैं, तो, यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात बीमारी है या बाय और यह किस प्रकार का है ? यह कठिन Problems है और यही वजह है कि इस disease की उपयुक्त चिकित्सा नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से इस disease से पीड़ित 50 प्रतिशत व्यक्ति सदैव परेशान रहते हैं। उन्हें कुछ दिन के लिए इस disease में राहत तो जरूर मिलती है, but पूर्णतया सही नहीं हो पाता है। इस disease की चिकित्सा एलोपैथी के माध्यम से पूर्णतया सम्भव नहीं है, जबकि Ayurved के माध्यम से इसे आज कल 90 प्रतिशत तक जरूर सही हो सकता है, शेष 10 प्रतिशत माँ भगवती जगत जननी की कृपा से ही सम्भव है।
वात रोग लक्षण और समस्यां
       इस disease के वजह body के सभी छोटे-बडे़ जोडो़ं व मांसपेशियों में दर्द व सूजन हो जाया करती है। गठिया में body के एकाध जोड़ में प्रचण्ड पीड़ा के साथ लालिमायुक्त सूजन और बुखार तक बन जाता है। यह disease शराब व मांस प्रेमियों को साधारण मनुष्यों की अपेक्षा जल्दी पकड़ता है। यह धीरे-धीरे body के सभी जोड़ों तक पहुँचता है। संधिवात उम्र बढ़ने के साथ मुख्यतः घुटनों और पैरों के मुख्य जोड़ों को क्रमशः अपनी गिरफ्त में लेता हैं।
      वात रोग की प्रारम्भ धीरे-धीरे होती है। शुरू में morning उठने पर हाथ पैरों के जोडा़ें में कड़ापन महसूस होता है और अंगुलियाँ चलाने में problem होती है। फिर इनमें सूजन व दर्द होने लगता है और अंग-अंग दर्द से ऐंठने लगता है जिसकी वजह से शरीर में थकावट व कमजोरी feel होती है। साथ ही बीमार व्यक्ति चिड़चिड़ा बन जाता है। इस disease की कारण सेे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम पड़ जाती है। इसी के साथ छाती में इन्फेक्शन, खांसी, बुखार तथा अन्य समस्यायें उत्पन्न हो जाया करती है। साथ ही चलना फिरना रुक जाता है।
     इन सबसे खतरनाक कुलंग वात होता है। यह disease कुल्हे, जंघा प्रदेश और समस्त कमर को पकड़ता है और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। इस disease में तीव्र चिलकन (फाटन) जैसा तीव्र दर्द होता है और बीमार व्यक्ति बेचैन हो जाता है, यहाँ तक कि इसमें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यह disease की सबसे खतरनाक स्टेज होती हैै। इस का बीमार व्यक्ति day and night दर्द से तड़पता रहता है और कुछ Time पश्चात् चलने-फिरने के काबिल भी नहीं रह जाता है। वह पूर्णतया बिस्तर पकड़ लेता है और चिड़चिड़ा बन जाता है।
रोग से छुटकारा
       इस disease से छुटकारा पाने के लिए कुछ असान Ayurvedic नुस्खे और तेल का विवरण नीचे दे रहे हैं, जो पूर्ण परीक्षित योग हैं। ये नुस्खे 90 प्रतिशत रोगियों को लाभ करते हैं। शेष 10 प्रतिशत अपने पिछले कर्मों की कारण से दुख पाते हैं, जिसमें औषधि कार्य नहीं करती। उसमें मात्र माता आदिशक्ति जगत् जननी भगवती दुर्गा जी और पूज्य गुरुदेव जी की कृपा ही बीमारी को दूर कर पाती है। यद्यपि ये नुस्खे परीक्षित हैं, but अपने चिकित्सक की देख रेख में लिजिएंगे तो अधिक अच्छा होगा। औषधि खाने की मात्रा रोग के According कम या अधिक दी जा सकती है।
   एक बात ध्यान रखें कि जो जड़ी-बूटी औषधि रूप में आप सेवन करें, वह पूर्णत: सही और ताजी हो। उसमें कीड़े न लगे हों, अधिक पुरानी न हो और साफ सुथरी हो, उन्ही औषधिइयों के मिश्रण का सेवन करें, लाभ अवश्य होगा।
चन्दसूर 50 grams, मेथी 50 grams, करैल 50 grams, अचमोद  50 grams, इन चारों औषधियों को कूट-के साथ पीस लें और ढक्कन वाले डिब्बे में रख दें। morning breakfast के बाद 1 spoon चूर्ण (Powder) गुनगुने जल के साथ लिजिएं और रात को भोजन के बाद गुनगुने दूध के साथ 1 spoon लिजिएं। यह औषधि भी at least 60 दिन लिजिएं। निश्चय ही आराम मिलता है।

Tuesday, 10 March 2015

Constipation-Kabj

कब्ज (Constipation)


But question यह उठता है कि कब्ज क्या होता हैं ? और इसका का संबंध Digestive Work से क्यों है?
कब्ज के वजह से शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाता है वैसे कहा जाए तो यह ही किसी रोग के उत्पन्न होने का मूल कारण होता है। But question यह उठता है कि कब्ज क्या होता हैं ? और इसका का संबंध Digestive Work से क्यों है?
जो भोजन (Food) हम खाते हैं, वह सही ढंग से जब नहीं पचता और आंतों में रूक जाता तो इस कारण से गैस बनना, पेट में दर्द रहना, मिचली आना, शौच जाने में Time लगना और morning पेट साफ न होना, दिन में 3-4 Time शौच के लिए जाना, बदबूदार गैस निकलना, पेट गुडगुडा़ना और खट्टी डकारें आना आदि बहुत से समस्यां उत्पन्न हो जाता हैं, जिसकी वजह से नये-नये रोगों उत्पन्न हो जाते हैं। कब्ज  यानि Constipation से बचने के लिए हम आपको कुछ नुस्खे बताने जा रहे हैं-
कब्ज रोग का चिकित्सा:
1-  कब्ज का चिकित्सा करने के लिए त्रिफला को 3 Grams से 5 grams की मात्रा रात को सोते Time गुनगुने जल के साथ लें। इसे Some days तक लगातार लिजिएं। इस चिकित्सा के साथा ही रात के वक्त में तांबे के बर्तन में जल रख लिजिएं और Morning में इसे पी लिजिएं। फिर इसके 15 minute बाद शौच करने जायें। इस प्रकार करने से पेट साफ हो जायेगा। यदि इस प्रकार से प्रतिदिन जब आप अपना चिकित्सा करते हैं तो आपको इस disease से छुटकार मिल जायेगा।
2- कब्ज के चिकित्सा के लिए Daily at least 2 या 3 हरड़ अवश्य चूसें। लगातार जब आप Somedays तक अपना चिकित्सा इस प्रकार से करते हैं तो कब्ज (Constipation) की समस्यां दूर हो जाया करती है।
3-  त्रिफला 25 grams, सौंफ25 grams, सोंठ 5 grams, बादाम 50 grams, मिश्री 20 grams लिजिएं और गुलाब के  फूल 50 grams भी लिजिएं। सभी को कूट तथा के साथ पीस लें और एक शीशी में भर लिजिएं। रात को सोते Time 5 से 7 Grams तक दूध या शहद के साथ लिजिएं। इस प्रकार से daily चिकित्सा करने से कब्ज ठीक हो जाता है।
कब्ज रोग में परहेज:
जिन्हें कब्ज अथार्त Constipation की Problem हो, वे लोग ध्यान दें कि कभी भी गरिष्ठ भोजन, तली चीजें तथा उरद आदि का सेवन न करें। गेहूं को अधिक बरीक न पिसायें और चोकर न निकालिजिएं। भोजन बनाने के लिए ऐसे ही आटे का सेवन करें। Daily थोड़ा मेहनत और योग करें। जल अधिक पियें। इस प्रकार प्रतिदिन चिकित्सा करें।
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Monday, 9 March 2015

Kaise Kaam Karta Hai Ayurved

कैसे काम करता है Ayurved?


पित्त से संबंधित है और जल में आग तत्वों. इस ऊर्जा है कि body के Body का तापमान, पाचन, अवशोषण सहित चयापचय प्रणाली,, और पोषण नियंत्रित करता है।
Ayurved आधार है कि ब्रह्मांड (मनुष्य का शरीर) सहित 'के पांच महान तत्वों: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है पर आधारित है. इन तत्वों या शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, में मनुष्यों द्वारा तीन "दोषों":
वात: वात संबंधित है और हवा आकाश तत्व. इस ऊर्जा है कि शारीरिक गति के साथ जुड़े श्वास, खून परिसंचरण, निमिष सहित काम करता है, को विनियमित है, और दिल की धड़कन है।
पित्त: पित्त से संबंधित है और जल में आग तत्वों. इस ऊर्जा है कि body के Body का तापमान, पाचन, अवशोषण सहित चयापचय प्रणाली,, और पोषण नियंत्रित करता है।
कफ: कफ संबंधित है और जल पृथ्वी तत्वों. यह विकास और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ऊर्जा है. यह body के सभी भागों में जल की आपूर्ति, त्वचा moisturizes, और प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखता है।
क्या आपको पता है कि आपका शरीर कैसा है? Ayurved में शरीर को तीन तरह का माना जाता है - वात, पित्त और कफ। Ayurved के According, हम सभी का शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके According उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और स्वभाव का पता लगाया जा सकता है।
यदि आप अपने शरीर (Body) के बारे में इतना कुछ जान लिजिएंगे तो यकीनन अपनी सेहत से जुड़ी Problems को हल करने और फिट रहने में आपको Help मिलेगी। तो जानिए, आखिर कैसा है आपका शरीर।
वात युक्त शरीर
Ayurved के According, वात युक्त शरीर का स्वामी वायु होता है।
बनावट - इस तरह के Body वाले व्यक्तियों का weight तेजी से नहीं बढ़ता और ये Mostly छरहरे होते हैं। इनका मेटाबॉलिज्म good होता है but इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। वैसे देखा जाए तो इनकी त्वचा Dry होती है और नब्ज तेज चलती है।
स्वभाव - सामान्यतः ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिये अक्सर इन्हें अनिद्रा की शिकायत अधिक रहती है। इनमें कामेच्छा अधिक होती है। इस तरह के लोग बातूनी किस्म के होते हैं।
मानसिक अवस्था - ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास अपेत्राकृत कम होता है। ये बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं।
डाइट - वात युक्त शरीर वाले व्यक्तियों को डाइट में अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स आदि का सेवन अधिक करना चाहिए।
पित्त युक्त शरीर
Ayurved के According, पित्त युक्त शरीर का स्वामी आग है।
बनावट - इस तरह के Body के लोग वैसे देखा जाए तो मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं। इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक होता है।
स्वभाव - इस तरह के व्यक्तियों को विचलित करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है, कामेच्छा और भूख तेज लगती हैं। वैसे देखा जाए तो इनके बोलने की टोन ऊंची होती है।
मानसिक अवस्था - इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।
डाइट - पित्त युक्त body के लिए डाइट में सब्जियां, फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए जिसकी वजह से शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।
कफ युक्त शरीर
कफ युक्त body के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। वैसे देखा जाए तो इस तरह के Body वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है।
बनावट - इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से weight बढ़ा लेते हैं but इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है।
स्वभाव - इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।
मानसिक अवस्था - इन्हें सीखने में समय लगता है और भावनात्मक होते हैं।
डाइट - कफ युक्त body के लिए डाइट में बहुत अधिक तैलीय और हेवी‌ भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए। हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।
इसे भी देखें- आयुर्वेद  | स्वास्थ्य की जानकारियां | Basil  |  Aniseed

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