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Wednesday, 19 March 2014

चाय- चाय क्या है और क्या है इसका लाभ

चाय एक प्रकार के पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ध है। चाय नियमित पीने के लिए नहीं है। यह आवश्यकतानुसार पीने पर लाभदायक होती है। यह ठंडी प्रकृति वालों के लिए हितकारी है। भूखे पेट चाय पीने से पाचन शक्ति खराब होती है तथा सोते समय चाय पीने से नींद कम आती है। इससे स्नायुविक दर्द (न्यूरेल्जिया) और रक्तचाप बढ़ता है। अत: ऐसे रोगियों के लिए चाय हानिकारक होती है।
यद्यपि चाय को दवा के रूप में विभिन्न कष्टों में प्रयोग करके लाभान्वित हो सकते हैं, किन्तु फिर भी इसे दैनिक पेय के रूप में प्रयोग करने से हानियां होती हैं। चाय आजकल संसार भर में घर-घर आतिथ्य सत्कार का प्रतीक है। घर, प्रवास, खेलकूद के मैदानों, महफिलों, सेमिनारों, राजनीतिक बैठक या सम्मेलनों, कवि सम्मेलन या मुशायरा आदि किसी भी आयोजनों में देखें। सभी जगहों पर चाय का प्रवेश हो चुका है।

नियमित रूप से चाय पीने से यह बहुत अधिक नुकसान करती है। यह पाचनशक्ति को नष्ट करती है और रक्त को जलाकर शरीर को सुखा देती है। यह बुद्धिजीवियों, मस्तिक से काम लेने वालों और ठंडे प्रदेश के निवासियों का पेय माना जाता है। ज्ञान तन्तुओं को यह क्षणिक उत्तेजना देती है। चाय मस्तिष्क की अपेक्षा मांस, धातु पर उत्तेजक प्रभाव डालती है। चाय पीने के बाद शारीरिक थकान कम लगती है। परन्तु अधिक चाय पीने से पाचनशक्ति खराब हो जाती है। इसमें कोई पोषक तत्व नहीं होता है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन होता है। 
चाय पीना कम से कम हानिकारक हो : इसके लिए चाय बनाने में ताजे पानी का प्रयोग करना चाहिए। बासी पानी नहीं। यदि बासी पानी हो तो उसे लोटे में भरकर ऊंचे से नीचे डालना चाहिए। पानी खौलने लग जाए तो उसे केतली में भर लें और उसमें उचित मात्रा में चाय डालकर केतली का ढक्कन बंद कर दें। इसके बाद उसमें आवश्यकतानुसार चीनी और दूध मिलाकर पियें। अधिक उबली हुई लाल रंग की चाय कभी भी नहीं पीनी चाहिए।
वैज्ञानिक मतानुसार : चाय में मुख्य द्रव्य कैफीन है। उसका असर 3 प्रकार से होता है- मूत्रल (मूत्रवर्धक), नाड़ी तंत्र की उत्तेजना और समस्त मांसपेशियों में बल की अनुभूति होती है। कैफीन हृदयोत्तेजक है। उसका उपयोग सिर दर्द, मूत्रकृच्छ, शक्तिपात, हृदय और नाड़ियों की कमजोरी, फेफड़ों की सूजन, हृदय विकार के कारण होने वाली सूजन, जीर्ण वृक्कदाह आदि पर होती है। यदि चाय में कैफीन नहीं होती तो जो चाय का महत्व है वह नहीं होता, चाय में दूसरा पदार्थ टैनिन है। टैनिन शरीर को अत्यधिक हानि पहुंचाता है। 
चाय में कुछ गुण भी होते हैं। यह पाचनशक्ति को जाग्रत करती है और भोजन में रुचि को उत्पन्न करती है। यह त्वचा और मूत्राशय को प्रभावित कर पसीना, पेशाब बहुत अधिक मात्रा में लाती है। चाय ठंडे जोश को जाग्रत करती है और थकान को उतारती है। भोजन के एक घंटे बाद चाय पीनी चाहिए। यह पित्त को बढ़ाती है। अत: भोजन के 3-4 घंटे बाद आहार के जिस अंश का पाचन न हुआ हो, उसे चाय पकाकर नीचे उतारती है।
ठण्डी या बरसात में : प्रात: कोई गर्म पेय पीने की इच्छा हो तो चाय के बदले काढ़ा पीना चाहिए। काढे़ में सोंठ, तज, पुदीना, तुलसी के पत्ते, इलायची आदि कूटकर डाला जाता है। यह देशी चाय अत्यन्त ही गुणकारी, पाचक और जुखाम, पीड़ा, मन्दाग्नि आदि को मिटाती है।
चाय के समान यदि कोई अन्य उपयोगी पेय बनाना हो तो अर्जुन की छाल 50 ग्राम, सोंठ और तज 5-5 ग्राम गुलाब के फूल और वीकरे के पत्ते 20-20 ग्राम तथा तुलसी का पत्ता और इलायची 10-10 ग्राम लें। इन सबका चूर्ण बनाकर, चाय की विधि के अनुसार पेय तैयार किया जा सकता है।

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