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Monday, 23 March 2015

Gharelu Dardnashak Ayurvedic Tel

घरेलु दर्दनाशक आयुर्वेदिक तेल


कई बार हमारे घुटनों,कमर, पीठ और पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है।
कई बार हमारे घुटनों,कमर, पीठ और पंसलियों आदि में दर्द हो जाता है। ऐसे ही दर्द को ठीक करने के लिए बाजार में कई प्रकार के Ayurvedic तेल मिलते हैं जिनसे मालिश करने से दर्द ठीक हो जाता है। आज ऐसा ही तेल बनाने कि विधि आपको बताने जा रहा हूँ जो सस्ता, असान और अचूक है और घर पर आराम से बनाया जा सकता है। 
सबसे पहले 40 grams पुदीना, 40 grams अजवायन और 40 grams ही कपूर लें। साफ़ बोतल में पुदीना डाल दें और उसके बाद अजवायन और कपूर को साथ पीस लें और उस बोतल में डाल दें जिसमें आगे पुदीना है। उसके बाद ढक्कन लगाकर हिला दें और रख दें। कुछ देर बाद तीनों चीजें मिलकर द्रव्य रूप में बदल जायेगी और इसे ही अमृतधारा कहते हैं।
अब 200 grams लहसुन लिजिएं और उसके छिलके उतार लें तथा लहसुन कि कलियों के छोटे छोटे टुकड़े कर लिजिएं। अब 1 kg सरसों का तेल कड़ाही में डालकर आंच पर गर्म होने के लिए रख दें। जब तेल पूरी तरह से गर्म हो जाए तो तेल को निचे उतार लें तथा ठंडा होने के लिए रख दें। जब तेल पूरा ठंडा हो जाए तो उसमें लहसुन के टुकड़े डालकर उसको फिर आंच पर चढाकर तेज और मंदी आंच में गर्म कीजिए। तेल को इतना पकाए कि लहसुन कि कलियाँ जलकर काली हो जाए। तेल के बर्तन को आंच पर से उतार लें तथा निचे रखे और उसमें गर्म तेल में ही 80 grams रतनजोत ( रतनजोत एक वृक्ष कि छाल होती है ) डाल दें इससे तेल का रंग लाल हो जाएगा।
तेल के ठंडा होने पर कपडे से छाले और किसी साफ़ बोतल में भर लिजिएं। अब इस पकाए हुए तेल अमृतधारा और 400 grams तारपीन का तेल मिलाकर अच्छी प्रकार से हिला दें। बस मालिश के लिए दर्दनाशक लाल तेल तैयार हो गया जिसका सेवन आप जब चाहे कर सकते हैं।

Cancer

कैंसर


तीय स्तर तक पहुँचे रोग का इलाज संभव नही है। यदि कुछ प्रतिशत संभव भी है, तो इलाज बहुत मंहगा है
         कैंसर का नाम सुनते ही शरीर में एक सिहरन सी हो जाया करती है। प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर भय व्याप्त हो जाता है क्योंकि यह प्राणघातक बीमारी है। इसे लाइलाज माना जाता है। प्रथम और द्वितीय स्तर तक पहुँचे कैंसर का इलाज तो संभव हो सका है, लेकिन तृतीय स्तर तक पहुँचे रोग का इलाज संभव नही है। यदि कुछ प्रतिशत संभव भी है, तो इलाज बहुत मंहगा है कि आम व्यक्ति के बस में नहीं है। फिर भी चिकित्सा जगत् अपनी कोशिश बराबर कर रहा है। निरंतर नई-नई शोधें कर रहा है। नई-नई विधियों से कैंसर निर्मूलन की कोशिश कर रहा है। कुछ हद तक सफल भी हुआ है, but पूर्ण सफलता से अभी दूर है। इसका कारण है कि प्रथम स्तर में कोई कैंसर को समझ नहीं पाता, जिसकी कारण से वह उसका उचित इलाज नहीं हो पाता। यदि जिसने इस disease का परीक्षण भी करा लिया तो औषधियां इतनी महंगी है कि वह उनका सेवन नहीं कर पाता। इसलिये यह disease बढ़ता ही जाता है और अंततोगत्वा बीमार व्यक्ति को निगल जाता है।  
कैंसर के वजह-  
1- कैसर के विषय की सम्पूर्ण जानकारी का अभाव । 
2- अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही की कारण से body के अन्दर और बाहर की साफ-सफाई न रखना ।
3- तम्बाकू और पान मसाला (गुटका) आदि का लगातार सेवन।  
4- बीड़ी, सिगरेट, गांजा आदि का सेवन । 
5- शराब के लगातार सेवन से ।  
6- पेट के कीडे़ (कृमि) से अमाशय या बड़ी आँत का कैंसर । 
7- मांसाहार के लगातार सेवन से। 
जब व्यक्ति बीड़ी, सिगरेट, गांजा आदि का लगातार सेवन करता है तो फेफड़ों को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, जिसके वजह खून पूर्णतः फिल्टर नही हो पाता। यही प्रकिया लगातार बनी रहने की कारण से रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है और कोई भी रोग खड़ा बन जाता है। ऐसा ही लगातार शराब के पी लेने से होती है। पानमसाला और गुटका में पड़े रसायनों से मुँह में रियेक्शन के अनुसार हुए घाव कैंसर का रूप ले लेते हैं। इसी प्रकार से पेट के कीड़े भी कैंसर का वजह बनते हैं, जब पेट में कीड़े पड़ जाते हैं और वह वहां रहते हुए अपना आकार बढ़ा लेते हैं, साथ ही बहुत सारे हो जाते हैं, ऐसी अवस्था में जब आप भोजन करते हैं तो वह कीड़े उस खाने को भी खा जाते हैं और मल विर्सजन करते हैं, वही जहरीला मल आंतो द्वारा खींचकर खून में मिला दिया जाता है, जिसकी वजह से खून में खराबी आ जाती है, साथ ही जब कीड़ों को कुछ खाने को नहीं मिलता तो वह आँतों की दीवारों को काटते हैं और वहां घाव उत्पन्न कर देते हैं। जैसे ही हमारे खाने के साथ कैंसर के बैक्टीरिया पेट में जाते हैं और उस घाव के सम्पर्क में आते हैं तो वह घाव कैंसर में परिवर्तित हो जाता हैं। इसी प्रकार मांसाहार से भी कैंसर फैलता है। जब कोई पशु-पक्षी कैंसर से पीड़ित होता है, हम उसे मारकर उसका मांस खाते हैं तो इस मांस के साथ कैंसर के जीवाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और कैंसर का वजह बनते हैं।  
कैंसर के प्रारम्भिक लक्षण 
1-  शरीर में कहीं भी घाव हो, जो भरता न हो। 
2-  body के किसी भी अंग से खून या मवाद लगातार आना। 
3-  body के किसी अंग या स्तन में गांठ का होना तथा धीरे-धीरे बढ़ना और उसे दबाने से दर्द होना। 
4-  लगातार अपच की Problem रहना। 
5-  खाना निगलने में कठिनाई होना। 
6-  लगातार मिचली की Problem होना।
7-  पेट में लगातार दर्द बना रहना। 
8-  नाक में सूजन आना, सांस लेने में समस्या तथा लगातार नाक में दर्द। 
     यदि ऐसी परिअवस्था आपके साथ हो रही है, तो इसे सामान्य न मानकर किसी योग्य कैंसर विशेषज्ञ से जांच अवश्य करा लिजिएं। यदि कैंसर की स्थिति निकले तो तुरन्त चिकित्सक की सलाह पर औषदि का सेवन करें। कैंसर, प्रथम और द्वितीय स्टेज तक पूर्णतः सही हो सकता है। कैंसर विशेषज्ञ आपका कुछ खून परीक्षण, एक्सरे, अल्ट्रासाउण्ड या सी.टी. स्कैन व एम.आर.आई. जैसी जांचें करेंगे, तथा इसकी पूर्ण अवस्था समझने के लिए बायोप्सी परीक्षण कर आपको कैंसर की सही अवस्था बता देंगे। उसी According आपकी रेडियोथिरेपी या कीमोथिरेपी चिकित्सा की सलाह देंगे। यह चिकित्सा बहुत मंहगी है जिसे सभी नहीं अपना सकते हैं। 
      कैसर के प्रथम और द्वितीय स्टेज के बीमार व्यक्ति Ayurved चिकित्सा से भी पूर्णतः सही होते हैं। अवश्यक है, लगन और विश्वास से इन औषधियों (Ayurvedic Medicines) के सेवन की, इसमें पैसा भी कम खर्च होता है और साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं। अवश्यक है सही औषधियों के मिलने की और अच्छे वैद्य की देख रेख में औषधि सेवन की।   
कैंसर निवारक Ayurvedic औषधियाँ-  
1- कैंसर नासक चूर्ण (Powder)-
पारसपीपर के बीज की गिरी, शुद्ध कपूर, जावित्री, जीयापोता (पुत्रजीवा) की गिरी, नीमगिलोय का (स्वयं का बनाया हुआ), इन सभी औषधियों (Ayurvedic Medicines) के समभाग चूर्ण (Powder) को एक साथ मिलाकर एक बन्द डिब्बे में रख लिजिएं। Daily सुबह में खाली पेट आधा Grams औषधि के चूर्ण (Powder) को 10 grams शहद और 10 grams गौमूत्र अर्क के साथ रात को सोते Time लिजिएं। लगातार रोग पूर्णरूपेण सही होने तक लिजिएं। इस औषधि के खाने से पतले दस्त जाते हैं, उस अवस्था में औषधि की मात्रा कम कर दें पर औषधि रोके नहीं। यह औषधि मरीज के बलाबल के According कम या अधिक मात्रा में दी जा सकती हैं। इससे कैंसर की गांठ body के किसी भी हिस्से में होगी सही होगी व कैंसर का घाव भी सही होता है।  
2- कैंसर नासक जड़ी-  
      सहस्रमुरिया का एक पौधा Daily जल में के साथ पीस लें और साथ में 10 grams शहद व 15 नग तुलसी पत्र व 10 grams गौमूत्र अर्क को मिलाकर सुबह में खाली पेट बीमार व्यक्ति को खिलायें। यह औषधि लगातार रोग सही होने तक दें। body के किसी भी अंग में कैंसर की गाठं या घाव को सही करती है। साथ ही खूनरोहेड़ा की छाल 2 तोला को 100 grams जल में धीमी आंच में पकाकर, जब वह जल 25 grams रह जाय तो उसे शाम को सोते Time 10 grams शुद्ध शहद व 10 grams गौमूत्र अर्क के साथ मिलाकर पिलायें, रोग सही होने तक। बीमार व्यक्ति पूर्ण धैर्य व विश्वास के साथ ही औषधि का लें लाभ जरूर होगा। 
नोट- इसी खूनरोहेड़ा की Ayurved में रोहितारिष्ट नाम से औषधि बनाई जाती है।   
3-  गेंहूँ के जवारे से कैंसर का नास 
    सिद्ध मकरध्वज 5 grams, कृमि मुदगरस 5 grams, सितोपलादि चूर्ण (Powder) 60 grams, मुक्ता पिष्टी 3 Grams, त्रणकान्तमणि पिष्टी 10 grams, अभ्रकभस्म सहस्त्रपुटी 5 grams, महायोगराज गुग्गुल 5 grams, श्रृंगभस्म 2 Grams, हीरक भस्म 5 मि,ग्रा., स्वर्ण भस्म 5 मि.ग्रा., नीम गिलोय 10 grams, इन सभी औषधियों को के साथ पीस लें और मिला लिजिएं और 120 पुड़िया बना लिजिएं। एक पुड़िया औषधि को 20 grams गेंहूँ के जवारे का रस, 10 grams शुद्ध शहद, 10 grams गौमूत्र अर्क, 15 पत्ते तुलसी के साथ सुबह में खाली पेट औषधि दें। औषधि की मात्रा बीमार व्यक्ति के According कम या अधिक की जा सकती हैं। इससे शरीर में कही भी गांठ या घाव हो, सही होता है।
परहेज-  
       शराब, मांस, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, गांजा आदि किसी भी तरह का नशा, गुटका, पान-मसाला, अधिक तली चीजें, अचार, लालमिर्च आदि का सेवन न करें। 
नोट - मरीज को औषधियों की पहचान न होने की कारण से इन औषधियों का सेवन किसी योग्य वैद्य की देख-रेख में ही लिजिएं। किसी औषधि का गलत तरीके से सेवन नुक्सान दायक भी हो सकता है इसके लिये लेखक जिम्मेदार नहीं होगा।
Related Links:    आयुर्वेद   |   अंगूर   |  डेंगू ज्वर   |   पेट के कीड़े    |   पीलिया औषधियों से उपचार

Saturday, 21 March 2015

Twacha Rog

त्वचारोग


इसमें खुजली इतनी होती है कि आप उसे खुजाते ही रहें और खुजाने के बाद जलन होती है, छोटे-छोटे दाने होते हैं
त्वचारोग एक कष्ट दायक बीमारी है, जो पूरे शरीर की त्वचा में कहीं भी उत्पन्न हो सकता है। अनियमित खान-पान, गंदे आहार, शरीर की Time-Time पर सफाई न होने और पेट में कृमि के पड़ जाने और लम्बे Time तक पेट में रहने के वजह उनका मल नसों द्वारा अवशोषित कर खून में मिलने से तरह तरह के त्वचारोग सहित शारीरिक अन्य बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं जो मनुष्य या अन्य जीवों के लिए बहुत  नुक्सान दायक होती है।
दाद (दद्रु) के लक्षण 
इसमें खुजली इतनी होती है कि आप उसे खुजाते ही रहें और खुजाने के बाद जलन होती है, छोटे-छोटे दाने होते हैं, त्वचा लाल रंग की मोटी चकत्तेदार हो जाती हैं। दाद अधिकतर जननांगों में जोड़ों के पास और जहाँ पसीना आता है व कपड़ा रगड़ता है, वहां पर होती है। वैसे यह शरीर में कहीं भी हो सकती है।  
खाज (खुजली) 
इसमें पूरे शरीर में सफेद रंग के छोटे-छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं। इन्हें फोड़ने पर जल जैसा liquid निकलता है जो पकने पर गाढ़ा बन जाता है। इसमें खुजली बहुत होती है, यह बहुधा हांथो की उंगलियों के जोड़ों में तथा पूरे शरीर में कहीं भी हो सकती है। इसको खुजाने को लगातार इच्छा होती है और जब खुजा देते है, तो बाद में असह्य जलन होती है तथा बीमार व्यक्ति को 24 घंटे चैन नहीं मिलता है। इसे छुतहा, संक्रामक, एक से दूसरे में जल्दी ही लगने वाला रोग भी कहा जाता है। बीमार व्यक्ति का तौलिया व चादर सेवन करने पर यह disease आगे चला जाता है, यदि बीमार व्यक्ति के हाथ में रोग हो और उससे हांथ मिलायें तो भी यह disease सामने वाले को बन जाता है।  
उकवत (एक्जिमा) -
दाद, खाज, खुजली जाति का एक रोग उकवत भी है, जो अधिक कष्टकारी है। रोग का स्थान लाल हो जाता है और उस पर छोटे-छोटे दाने उत्पन्न हो जाते हैं। इसमें चकत्ते तो नही पड़ते but यह शरीर में कहीं भी बन जाता है। यह अधिकतर सर्दियों में होता है और गर्मियों में अधिकांशतया सही बन जाता है। अपवाद स्वरूप गर्मी में भी हो सकता है। यह दो तरह का होता है। एक सूखा और दूसरा गीला। सूखे से पपड़ी जैसी भूसी निकलती रहती है और गीले से मवाद जैसा निकलता होता है। यदि यह सर में हो जाये तो उस जगह के बाल झड़ने लगते हैं। यह शरीर में कहीं भी हो सकता है। 
गजचर्म 
    कभी-कभी body के किसी अंग की त्वचा हाथी के पांव के चमड़े की तरह मोटी, कठोर और रूखी हो जाया करती है। उसे गजचर्म कहते हैं।
चर्मदख 
    Body के जिस भाग का रंग लाल हो, जिसमें बराबर दर्द रहे, खुजली होती रहे और फोड़े फैलकर जिसका चमड़ा फट जाय तथा किसी भी पदार्थ का स्पर्श न सह सके, उसे चर्मदख कहते हैं।
विचर्चिका तथा विपादिका 
     इस disease में काली या धूसर रंग की छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, जिनमें से पर्याप्त मात्रा में मवाद  बहता है और खुजली भी होती है तथा शरीर में रूखापन  की कारण से हाथों की त्वचा फट जाती है, तो उसे विचर्चिका कहते हैं। यदि पैरों की त्वचा फट जाय और तीव्र दर्द हो, तो उसे विपादिता कहते हैं। इन दोनों में मात्र इतना ही भेद है।
पामा और कच्छु 
     यह भी अन्य त्वचा रोगों की तरह एक प्रकार की खुजली ही है। इसमें भी छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं। उनमें से मवाद निकलता है, जलन होती है और खुजली भी बराबर बनी रहती है। यदि यही फुन्सियां बड़ी-बड़ी और तीव्र दाहयुक्त हों तथा विशेष कमर या कूल्हे में हों, तो उसे कच्छू कहा जाता है।  
(1) दाद, खाज, खुजली 
(अ) आंवलासार गंधक को गौमूत्र के अर्क में मिलाकर Daily सुबह और शाम लगायें। इससे दाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है। 
(ब) शुद्ध किया हुआ आंवलासार गंधक 1 रत्ती को 10 grams गौमूत्र के अर्क के साथ 90 दिन लगातार पी लेने से समस्त त्वचा रोगों में लाभ होता है।  
(2) एक्जिमा (त्वचा रोगों में लगाने का महत्व) -
आंवलासार गंधक 50 grams, राल 10 grams, मोम (शहद वाला) 10 grams, सिन्दूर शुद्ध 10 grams, लेकर पहले गंधक को तिल के तेल में डालकर धीमी आंच पर गर्म करें। जब गन्धक तेल में घुल जाय, तो उसमें सिन्दूर व अन्य औषधियां powder करके मिला दें तथा सिन्दूर का कलर काला होने तक इन्हें पकायें और आग से नीचे उतार लें तथा गरम-गरम ही उसी बर्तन में घोंटकर मल्हम (Paste) जैसा बना लिजिएं। यह मल्हम एग्जिमा, दाद, खाज, खुजली, अपरस आदि समस्त त्वचा रोगों में लाभदायक है। यह मल्हम सही होने तक दोनों time लगायें।
(3) दाद, खाज, खुजली, एग्जिमा, अकौता, अपरस का मल्हम  
गन्धक-10 grams, पारा 3 Grams, मस्टर 3 Grams, तूतिया 3 Grams, कबीला 15 grams, रालकामा 15 grams, इन सब को कूट-के साथ पीस लें और कपड़छन करके एक शीशी में रख लिजिएं। दाद में मिट्टी के तेल (केरोसीन) में लेप बनाकर लगाऐं, खाज में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सुबह और शाम लगायें। अकौता एग्जिमा में नीम के तेल में मिलाकर लगायें। यह औषधि 10 दिन में ही सभी त्वचारोगों में पूरा आराम देती है।
(4)दाद, दिनाय -
चिलबिल (चिल्ला) पेड़ की पत्ती का रस केवल एक बार लगाने से दाद दिनाय या चर्म रोग सही बन जाता है। यदि अवश्यक पड़े तो दो या तीन time लगायें, अवश्य लाभ मिलेगा।  
(5) चर्म रोग नाशक अर्क  
शुद्ध आंवलासार गंधक, ब्रह्मदण्डी, पवार (चकौड़ा) के बीज, स्वर्णछीरी की जड़, भृंगराज का पंचांग, नीम के पत्ते, बाबची, पीपल की छाल, इन सभी को 100 -100 grams की मात्रा में लेकर जौ कुट कर शाम को 3 लीटर जल में भिगो दें। साथ ही 10 grams छोटी इलायची भी कूटकर डाल दें और morning इन सभी का अर्क निकाल लिजिएं। यह अर्क 10 grams की मात्रा में सुबह में खाली पेट मिश्री के साथ पी लेने से समस्त त्वचा रोगों में लाभ करता है। इसमें खून में आई खराबी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और खून शुद्ध बन जाता है। इसके सेवन से मुँह की झांई, आंखों के नीचे कालापन, मुहासे, फुन्सियां, दाद, खाज, खुजली, अपरस, अकौता, कुष्ठ आदि समस्त त्वचा रोगों में पूर्ण लाभदायक है।
खून शोधक  
(अ) रीठे के छिलके के powder में शहद मिलाकर चने के बराबर गोलियाँ बना लिजिएं। सुबह के समय एक गोली अधबिलोये दही के साथ और सायंकाल जल के साथ निगलं ले। उपदंश, खाज, खुजली, पित्त, दाद और चम्बल के लिए पूर्ण लाभपदायक है।
(ब) सिरस की छाल का powder 6 grams सुबह और शाम शहद के साथ 60 दिन लें। इससे सम्पूर्ण रक्तदोष सही होते हैं।
(स) अनन्तमूल, मूलेठी, सफेद मूसली गोरखमुण्डी, खूनचन्दन, शनाय और असगन्ध 100 -100 grams तथा सौंफ, पीपल, इलायची, गुलाब के फूल 50 -50 grams। सभी को जौकुट करके एक डिब्बे में भरकर रख लिजिएं और 1 spoon (10Grams) 200 grams जल में धीमी आंच में पकाएं और जब जल 50 grams रह जाय तब उसे छाले और  उसके दो भाग करके सुबह व शाम मिश्री मिलाकर पियें। यह क्वाथ खून विकार, उपदंश, सूजाख के उपद्रव, वातखून और कुष्ठबीमारी को दूर करता है।

Friday, 20 March 2015

Ayurved se Rog Nivaran

Ayurved से रोग निवारण


करेला (कड़वा वाला) का रस 50 Grams को निकालकर Daily सुबह में खाली पेट पीना चाहिये।
1. करेला (कड़वा वाला) का रस 50 Grams को निकालकर Daily सुबह में खाली पेट पीना चाहिये। इसके एक घण्टे बाद ही कुछ खाना चाहिए। इससे धीरे-धीरे Blood Pressure normal होने लगता है। 
2. गौमूत्र का अर्क यदि Daily सुबह में खाली पेट और रात को सोते Time 10-10 grams की मात्रा में Daily लिया जाये, तो भी Blood Pressure normal बन जाता है।  
3. अर्जुन की छाल का चूर्ण (Powder) 5 grams की मात्रा morning और 5 grams की मात्रा शाम को सोते Time लगातार लेने से Blood Pressure normal होता है और हृदय से संबंधित बीमारियों में पूर्ण लाभ मिलता है, यहाँ तक कि चिकित्सक ने यदि हृदय का ऑपरेशन भी बताया हो, तो उससे भी बचा जा सकता है। 
4. वृहद् वातचिन्तामणि रस 3 रत्ती की मात्रा morning शहद से लेने पर High Blood Pressure normal बन जाता है।
Related Links: आयुर्वेद   |   आयुर्वेदिक औषधियां   |  रोग और उपचार

High Blood Pressure se kaise bache

High Blood Pressure से कैसे बचें


1. नमक का सेवन कम करना चाहिये क्योंकि वैज्ञानिक प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि नमक अधिक खाने से Blood Pressure बढ़ता है, यदि जिसको पता चल चुका है कि उसे Blood Pressure है तो नमक की मात्रा खाने में कम करना चाहिये। 
2. धूम्रपान और शराब आदि पी लेने से शरीर की स्थिति अनियंत्रित होती है और ब्लडप्रेसर High होता है। इसलिये भूल कर भी ऐसी चीजों का सेवन न करें। बीड़ी, सिगरेट, गांजा, अफीम, चरस, हुक्का, आदि का धुआँ फेफड़े को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाता है और वही धुआँ आक्सीजन के साथ मिलकर खून में पहुंच कर उसे भी गंदे करता है, वही खून समस्त अंगो में जाकर उनको कमजोर बनाता है और इससे तरह तरह की बहुत से बीमारियाँ उत्पन्न होने लगती है। 
3. मानसिक उलझन से बचना चाहिये तथा अधिक मोटापा भी ब्लडप्रेसर High करता है। अतः मोटापा अधिक न बढ़ने दें। 
4. Blood Pressure के रोगियों को संतुलित भोजन करना चाहिये। हरी सब्जी अधिक मात्रा में खानी चाहिये और सलाद भी भरपूर मात्रा में लिजिएं तथा फास्ट फूड जैसी चीजे न खायें। घी तेल का सेवन कम मात्रा में करे और body की जरूरत से अधिक भोजन न करें। 
5. हल्के योगासन, प्राणयाम और ध्यान प्रक्रिया रोजाना करना चाहिए। भारी योगासन न करें but at least 30 minutes योगासन करने का Time अवश्य दें। इसके बाद सुखासन या जिस आसन में आप  समस्यां महसूस न करें, उसमें रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठ जाये और धीरे-धीरे गहरी सांस अन्दर तक लिजिएं और धीरे-धीरे बाहर कीजिएं। इस प्रकार 15से 30बार Daily करने का अभ्यास करें तथा फिर शांत चित्त होकर बैठ जायें और अपना ध्यान दोनों भौहों के मध्य आज्ञाचक्र में केन्द्रित करने की कोशिश करें और मन ही मन अपने शरीर (Body) में भाव रखें कि मेरा Blood Pressure सामान्य हो रहा है। यह प्रक्रिया at least 10से 20 minutes तक अवश्य करें। आप देखेंगे की आपका Blood Pressure सामान्य आने लगेगा। शरीर की कार्य करने की क्षमता बढ़ने लगेगी। 
6. उक्त खून चाप से कोलेस्ट्राल का अधिक संबंध नहीं है। but, यह हृदय रोग से जुड़ा है, इसलिये उक्त Blood Pressure के मरीजों को भोजन में सेचुरेटेड फैट (घी, मलाई, मांस, युक्त चर्बी, अंडा) आदि का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति मांसाहार, अंडा आदि का सेवन करता है उसका Blood Pressure निश्चय ही अनियंत्रित हो जाता है, जो body के लिये नुक्सान दायक है। इसलिये जो व्यक्ति मंासाहार, अंडा आदि का सेवन करता है उसका Blood Pressure निश्चय ही अनियंत्रित बन जाता है। यह body के लिये नुक्सान दायक है इसलिये मंासाहार का पूर्णतः त्याग करना चाहिये।

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