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Thursday, 12 March 2015

Pitt

पित्त


यह सत्त्वगुण प्रधान होता है
यह स्पर्श और गुण में उष्ण होता है, दूसरे शब्दों में अग्नि रूप होता है और द्रव (liquid) रूप में होता है। इसका रंग पीला और नीला होता है। यह सत्त्वगुण प्रधान होता है, रस में कटु (चरपरा) और तिक्त (कड़वा) होता है तथा गंदे होने पर खट्टा बन जाता है। 
पित्त प्रकृति के लक्षण
    पित्त प्रकृति के व्यक्ति के बाल Time से पहले ही सफेद हो जाते हैं, but वह बुद्धिमान् होता है। उसे पसीना अधिक आता है। उसके स्वभाव में क्रोध अधिक होता है और इस तरह का मनुष्य निद्रावस्था में चमकीली चीजें देखता है।  
पित्त के स्थान और कार्य
        अग्नाशय (पक्वाशय के मध्य) में अग्नि रूप (पाचक रूप) परिमाण की अवस्था में होता है। इसको पाचक पित्त कहते हैं। यह चतुर्दिक आहार को पचाता है। इसका उलेख इस प्रकार भी हो सकता है:
        त्वचा (त्वचा) में जो पित्त रहता है, वह त्वचा में कांति (प्रभा)की उत्पत्ति करता है और body की बाहरी त्वचा पर लगाये हुये लेप और अभ्यंग को पचाता (शोषण करता) है। यह body के तापमान को स्थिर रखता है। इसको श्राजक पित्त कहते हैं।
        जो पित्त दोनों आंखों में रहकर (कृष्ण-पीतादि)रूपोें का ज्ञान देता हैै, उसको आलोचक (दिखाने वाला) पित्त कहा जाता है। जो पित्त हृदय में रहकर मेधा (धारणाशक्ति) और प्रज्ञा (बुद्धि) को देता है, वह ‘साधक’ पित्त होता है।
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Vaata Rog

वात रोग


यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात बीमारी है या बाय और यह किस प्रकार का है ?
Ayurvedic ग्रन्थों के According वात 80 प्रकार का होता है और इसी से सामंजस्य रखता हुआ एक और बीमारी है जिसे बाय या वायु कहते हैं। यह 84 प्रकार का होता है। यहाँ question यह उठता है कि जब वात और वायु के इतने प्रकार हैं, तो, यह कैसे पता लगाया जाय कि यह वात बीमारी है या बाय और यह किस प्रकार का है ? यह कठिन Problems है और यही वजह है कि इस disease की उपयुक्त चिकित्सा नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से इस disease से पीड़ित 50 प्रतिशत व्यक्ति सदैव परेशान रहते हैं। उन्हें कुछ दिन के लिए इस disease में राहत तो जरूर मिलती है, but पूर्णतया सही नहीं हो पाता है। इस disease की चिकित्सा एलोपैथी के माध्यम से पूर्णतया सम्भव नहीं है, जबकि Ayurved के माध्यम से इसे आज कल 90 प्रतिशत तक जरूर सही हो सकता है, शेष 10 प्रतिशत माँ भगवती जगत जननी की कृपा से ही सम्भव है।
वात रोग लक्षण और समस्यां
       इस disease के वजह body के सभी छोटे-बडे़ जोडो़ं व मांसपेशियों में दर्द व सूजन हो जाया करती है। गठिया में body के एकाध जोड़ में प्रचण्ड पीड़ा के साथ लालिमायुक्त सूजन और बुखार तक बन जाता है। यह disease शराब व मांस प्रेमियों को साधारण मनुष्यों की अपेक्षा जल्दी पकड़ता है। यह धीरे-धीरे body के सभी जोड़ों तक पहुँचता है। संधिवात उम्र बढ़ने के साथ मुख्यतः घुटनों और पैरों के मुख्य जोड़ों को क्रमशः अपनी गिरफ्त में लेता हैं।
      वात रोग की प्रारम्भ धीरे-धीरे होती है। शुरू में morning उठने पर हाथ पैरों के जोडा़ें में कड़ापन महसूस होता है और अंगुलियाँ चलाने में problem होती है। फिर इनमें सूजन व दर्द होने लगता है और अंग-अंग दर्द से ऐंठने लगता है जिसकी वजह से शरीर में थकावट व कमजोरी feel होती है। साथ ही बीमार व्यक्ति चिड़चिड़ा बन जाता है। इस disease की कारण सेे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम पड़ जाती है। इसी के साथ छाती में इन्फेक्शन, खांसी, बुखार तथा अन्य समस्यायें उत्पन्न हो जाया करती है। साथ ही चलना फिरना रुक जाता है।
     इन सबसे खतरनाक कुलंग वात होता है। यह disease कुल्हे, जंघा प्रदेश और समस्त कमर को पकड़ता है और रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। इस disease में तीव्र चिलकन (फाटन) जैसा तीव्र दर्द होता है और बीमार व्यक्ति बेचैन हो जाता है, यहाँ तक कि इसमें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यह disease की सबसे खतरनाक स्टेज होती हैै। इस का बीमार व्यक्ति day and night दर्द से तड़पता रहता है और कुछ Time पश्चात् चलने-फिरने के काबिल भी नहीं रह जाता है। वह पूर्णतया बिस्तर पकड़ लेता है और चिड़चिड़ा बन जाता है।
रोग से छुटकारा
       इस disease से छुटकारा पाने के लिए कुछ असान Ayurvedic नुस्खे और तेल का विवरण नीचे दे रहे हैं, जो पूर्ण परीक्षित योग हैं। ये नुस्खे 90 प्रतिशत रोगियों को लाभ करते हैं। शेष 10 प्रतिशत अपने पिछले कर्मों की कारण से दुख पाते हैं, जिसमें औषधि कार्य नहीं करती। उसमें मात्र माता आदिशक्ति जगत् जननी भगवती दुर्गा जी और पूज्य गुरुदेव जी की कृपा ही बीमारी को दूर कर पाती है। यद्यपि ये नुस्खे परीक्षित हैं, but अपने चिकित्सक की देख रेख में लिजिएंगे तो अधिक अच्छा होगा। औषधि खाने की मात्रा रोग के According कम या अधिक दी जा सकती है।
   एक बात ध्यान रखें कि जो जड़ी-बूटी औषधि रूप में आप सेवन करें, वह पूर्णत: सही और ताजी हो। उसमें कीड़े न लगे हों, अधिक पुरानी न हो और साफ सुथरी हो, उन्ही औषधिइयों के मिश्रण का सेवन करें, लाभ अवश्य होगा।
चन्दसूर 50 grams, मेथी 50 grams, करैल 50 grams, अचमोद  50 grams, इन चारों औषधियों को कूट-के साथ पीस लें और ढक्कन वाले डिब्बे में रख दें। morning breakfast के बाद 1 spoon चूर्ण (Powder) गुनगुने जल के साथ लिजिएं और रात को भोजन के बाद गुनगुने दूध के साथ 1 spoon लिजिएं। यह औषधि भी at least 60 दिन लिजिएं। निश्चय ही आराम मिलता है।

Tuesday, 10 March 2015

Constipation-Kabj

कब्ज (Constipation)


But question यह उठता है कि कब्ज क्या होता हैं ? और इसका का संबंध Digestive Work से क्यों है?
कब्ज के वजह से शरीर में कई प्रकार के रोग हो जाता है वैसे कहा जाए तो यह ही किसी रोग के उत्पन्न होने का मूल कारण होता है। But question यह उठता है कि कब्ज क्या होता हैं ? और इसका का संबंध Digestive Work से क्यों है?
जो भोजन (Food) हम खाते हैं, वह सही ढंग से जब नहीं पचता और आंतों में रूक जाता तो इस कारण से गैस बनना, पेट में दर्द रहना, मिचली आना, शौच जाने में Time लगना और morning पेट साफ न होना, दिन में 3-4 Time शौच के लिए जाना, बदबूदार गैस निकलना, पेट गुडगुडा़ना और खट्टी डकारें आना आदि बहुत से समस्यां उत्पन्न हो जाता हैं, जिसकी वजह से नये-नये रोगों उत्पन्न हो जाते हैं। कब्ज  यानि Constipation से बचने के लिए हम आपको कुछ नुस्खे बताने जा रहे हैं-
कब्ज रोग का चिकित्सा:
1-  कब्ज का चिकित्सा करने के लिए त्रिफला को 3 Grams से 5 grams की मात्रा रात को सोते Time गुनगुने जल के साथ लें। इसे Some days तक लगातार लिजिएं। इस चिकित्सा के साथा ही रात के वक्त में तांबे के बर्तन में जल रख लिजिएं और Morning में इसे पी लिजिएं। फिर इसके 15 minute बाद शौच करने जायें। इस प्रकार करने से पेट साफ हो जायेगा। यदि इस प्रकार से प्रतिदिन जब आप अपना चिकित्सा करते हैं तो आपको इस disease से छुटकार मिल जायेगा।
2- कब्ज के चिकित्सा के लिए Daily at least 2 या 3 हरड़ अवश्य चूसें। लगातार जब आप Somedays तक अपना चिकित्सा इस प्रकार से करते हैं तो कब्ज (Constipation) की समस्यां दूर हो जाया करती है।
3-  त्रिफला 25 grams, सौंफ25 grams, सोंठ 5 grams, बादाम 50 grams, मिश्री 20 grams लिजिएं और गुलाब के  फूल 50 grams भी लिजिएं। सभी को कूट तथा के साथ पीस लें और एक शीशी में भर लिजिएं। रात को सोते Time 5 से 7 Grams तक दूध या शहद के साथ लिजिएं। इस प्रकार से daily चिकित्सा करने से कब्ज ठीक हो जाता है।
कब्ज रोग में परहेज:
जिन्हें कब्ज अथार्त Constipation की Problem हो, वे लोग ध्यान दें कि कभी भी गरिष्ठ भोजन, तली चीजें तथा उरद आदि का सेवन न करें। गेहूं को अधिक बरीक न पिसायें और चोकर न निकालिजिएं। भोजन बनाने के लिए ऐसे ही आटे का सेवन करें। Daily थोड़ा मेहनत और योग करें। जल अधिक पियें। इस प्रकार प्रतिदिन चिकित्सा करें।
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Monday, 9 March 2015

Kaise Kaam Karta Hai Ayurved

कैसे काम करता है Ayurved?


पित्त से संबंधित है और जल में आग तत्वों. इस ऊर्जा है कि body के Body का तापमान, पाचन, अवशोषण सहित चयापचय प्रणाली,, और पोषण नियंत्रित करता है।
Ayurved आधार है कि ब्रह्मांड (मनुष्य का शरीर) सहित 'के पांच महान तत्वों: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है पर आधारित है. इन तत्वों या शक्तियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, में मनुष्यों द्वारा तीन "दोषों":
वात: वात संबंधित है और हवा आकाश तत्व. इस ऊर्जा है कि शारीरिक गति के साथ जुड़े श्वास, खून परिसंचरण, निमिष सहित काम करता है, को विनियमित है, और दिल की धड़कन है।
पित्त: पित्त से संबंधित है और जल में आग तत्वों. इस ऊर्जा है कि body के Body का तापमान, पाचन, अवशोषण सहित चयापचय प्रणाली,, और पोषण नियंत्रित करता है।
कफ: कफ संबंधित है और जल पृथ्वी तत्वों. यह विकास और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ऊर्जा है. यह body के सभी भागों में जल की आपूर्ति, त्वचा moisturizes, और प्रतिरक्षा प्रणाली को बनाए रखता है।
क्या आपको पता है कि आपका शरीर कैसा है? Ayurved में शरीर को तीन तरह का माना जाता है - वात, पित्त और कफ। Ayurved के According, हम सभी का शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है, जिसके According उसकी बनावट, दोष, मानसिक अवस्था और स्वभाव का पता लगाया जा सकता है।
यदि आप अपने शरीर (Body) के बारे में इतना कुछ जान लिजिएंगे तो यकीनन अपनी सेहत से जुड़ी Problems को हल करने और फिट रहने में आपको Help मिलेगी। तो जानिए, आखिर कैसा है आपका शरीर।
वात युक्त शरीर
Ayurved के According, वात युक्त शरीर का स्वामी वायु होता है।
बनावट - इस तरह के Body वाले व्यक्तियों का weight तेजी से नहीं बढ़ता और ये Mostly छरहरे होते हैं। इनका मेटाबॉलिज्म good होता है but इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। वैसे देखा जाए तो इनकी त्वचा Dry होती है और नब्ज तेज चलती है।
स्वभाव - सामान्यतः ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिये अक्सर इन्हें अनिद्रा की शिकायत अधिक रहती है। इनमें कामेच्छा अधिक होती है। इस तरह के लोग बातूनी किस्म के होते हैं।
मानसिक अवस्था - ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास अपेत्राकृत कम होता है। ये बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं।
डाइट - वात युक्त शरीर वाले व्यक्तियों को डाइट में अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स आदि का सेवन अधिक करना चाहिए।
पित्त युक्त शरीर
Ayurved के According, पित्त युक्त शरीर का स्वामी आग है।
बनावट - इस तरह के Body के लोग वैसे देखा जाए तो मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं। इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक होता है।
स्वभाव - इस तरह के व्यक्तियों को विचलित करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है, कामेच्छा और भूख तेज लगती हैं। वैसे देखा जाए तो इनके बोलने की टोन ऊंची होती है।
मानसिक अवस्था - इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।
डाइट - पित्त युक्त body के लिए डाइट में सब्जियां, फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए जिसकी वजह से शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।
कफ युक्त शरीर
कफ युक्त body के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। वैसे देखा जाए तो इस तरह के Body वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है।
बनावट - इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चौड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से weight बढ़ा लेते हैं but इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है।
स्वभाव - इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।
मानसिक अवस्था - इन्हें सीखने में समय लगता है और भावनात्मक होते हैं।
डाइट - कफ युक्त body के लिए डाइट में बहुत अधिक तैलीय और हेवी‌ भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए। हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।
इसे भी देखें- आयुर्वेद  | स्वास्थ्य की जानकारियां | Basil  |  Aniseed

History of ayurveda

Ayurved का इतिहास


Herbal remedies
पुरातत्ववेत्ताओं के According संचार की पूरानी पुस्तक ऋग्वेद है ।। बहुत से विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा के 3 हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना है ।। इस संहिता में भी Ayurved के अतिमहत्त्वपूर्ण  सिद्धान्त यत्र- तत्र विकीर्ण है । अनेक ऐसे विषयों का उल्लेख है जिसके संबंध में आज के वैज्ञानिक भी सफल नहीं हो पाये है ।।
इससे Ayurved की प्राचीनता सिद्ध होती है ।। अतः हम कह सकते हैं कि Ayurved की रचनाकाल ईसा पूर्व 3 हजार से 50 वर्ष पहले यानि सृष्टि की उत्पत्ति के आस- पास या साथ का ही है ।।
Ayurved के Historical Knowledge के संदर्भ में सर्वप्रथम ज्ञान का उल्लेख, चरक मत के According मृत्युलोक में Ayurved के अवतरण के साथ- अग्निवेश का नामोल्लेख है ।। सर्वप्रथम ब्रह्मा से प्रजापति ने, प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने, उनसे इन्द्र ने और इन्द्र से भारद्वाज ने Ayurved का अध्ययन किया ।।
फिर भारद्वाज ने Ayurved के प्रभाव से दीर्घ सुखी और आरोग्य जीवन प्राप्त कर अन्य ऋषियों में उसका प्रचार किया ।। तदनतर पुनर्वसु आत्रेय ने अग्निवेश, भेल, जतू, पाराशर, हारीत और क्षारपाणि नामक 6 शिष्यों को Ayurved का उपदेश दिया ।। इन 6 शिष्यों में सबसे अधिक बुद्धिमान अग्निवेश ने सर्वप्रथम एक संहिता का निर्माण किया- अग्निवेश तंत्र का, जिसका प्रति संस्कार बाद में चरक ने किया और उसका नाम चरक संहिता पड़ा, जो Ayurved का आधार स्तंभ है ।।
सुश्रुत के According काशीराज देवीदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षियों के साथ सुश्रुत जब Ayurved का अध्ययन करने के लिए गये और उनसे आवेदन किया ।। उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन व्यक्तियों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद Ayurved को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया और पुनः मनुष्य को अल्पमेधावी समझकर इसे आठ अंगों में विभक्त कर दिया ।।
इस प्रकार धन्वन्तरि ने भी Ayurved का प्रकाशन बह्मदेव द्वारा ही प्रतिपादित किया हुआ माना है ।। पुनः भगवान धन्वन्तरि ने कहा कि ब्रह्मा से दक्ष प्रजापति, उनसे अश्विनीकुमार तथा उनसे इन्द्र ने Ayurved का अध्ययन किया ।।
चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता में उलेख इतिहास एवं Ayurved के अवतरण के क्रम में क्रमशः आत्रेय सम्प्रदाय तथा धन्वन्तरि सम्प्रदाय ही मान्य है ।।
चरक अनुसार-आत्रेय सम्प्रदाय ।।
सुश्रुत अनुसार- धन्वन्तरि सम्प्रदाय ।।
Ayurved अर्थात जीवन रक्षा संबंधी ज्ञान है जो अनादि एवं परम्परागत है ।। और इसी परम्परागत प्राप्त ज्ञान को ही समय- समय आचार्यों ने लिपिबद्ध कर संहिताओं एवं अन्य ग्रन्थों की रचना कर Ayurved को जनहित में प्रतिपादित किया ।।
क्योंकि इतिहास परम्परागत अस्तित्व एवं ज्ञान का द्योतक है तथा परम्परागत ज्ञान का बोध कराता है, इसलिये 'ऐतिह्य' शब्द मात्र ही ज्ञान एवं ऐतिहासिक शब्द का बोध करा देता है ।। क्योंकि परम्परागत प्राप्त ज्ञान मौलिक प्रमाण माना जाता है जिसके वजह ही इसको आप्तोपदेश की संज्ञा दी गई है ।।
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